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________________ [9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे 327 दादाश्री : उससे मिठास लगी न! शरीर में उसकी मिठास लगी इसलिए उसके एवज में उसकी वैल्यू चुका देते हैं। अहंकार भग्न व्यक्ति ऐसा होता है। प्रश्नकर्ता : ऐसे तो कई अहंकार भग्न होते हैं। सब जगह ऐसे ही, तरह-तरह के होते हैं। दादाश्री : अगर उन्हें बताएँगे तो कितना दु:ख होगा! उन्हें मत बताना। लेकिन वे खुद कैसे इंसान थे... एक बार हम उनके घर गए थे, तब वे सब्ज़ी लेकर आए थे। खुद एक मील दूर गए और सब्जी लेकर आए। उसके बाद फिर घर आकर पैसे गिने तब कहने लगे कि, 'सब्जी वाली का एक आना ज्यादा आ गया है। चाचा आप बैठिए, मैं उसे देकर आता हूँ'। हमें बैठाए रखा और वह वापस उसे देने गया। मैंने कहा, 'बैठ न, अब बाद में दे देना, कल दे देना'। तब उसने कहा, 'नहीं, उस बेचारी को अभी गिनते समय दुःख होगा'। अब इन्हें पागल भी कैसे कह सकते हैं? लेकिन देखो, सब्जी वाली को एक आना वापस क्यों दे आते हैं। वह हिसाब भी देखने जैसा है न! तो वह वापस जाकर उसे पैसे दे आया बेचारा। क्या तू देकर आएगा? नहीं जाएगा देने। मैं भी नहीं दूंगा न। यह क्या झंझट? कल दे आएँगे भाई। अगर देने ही हैं तो कल दे देंगे, परसों दे देंगे, जब मिलेगी तब दे देंगे। वह तो कहता है, 'अभी ही जाकर...' तो मुझे बैठाए रखा और चला गया। अब उसके भी कुछ सिद्धांत तो हैं न, ध्येय तो है या नहीं? ध्येय रहित जीवन कैसे हो सकता है? वर्ना फिर यहाँ मुझसे मिलते ही कैसे? दादा ने ध्यान रखकर शादी करवाई भतीजे की बेटी की फिर जब उनकी बेटी शादी लायक हुई, तब उस मनु ने काफी कमाया हुआ था तो मैंने मनु से कहा, 'तू ज़्यादा दे'। चिमन भाई के पास ज़्यादा नहीं है, बच्चे भी बहुत नहीं भेजते। चिमन भाई से कहा, 'तू भी देना'। बेटी की शादी का समय आ गया। वह कम पढ़ी-लिखी थी। तब मैंने कहा, 'इसके लिए कुछ करो'। तब मनु ने कहा, 'मैं सात हज़ार
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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