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________________ [9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे 325 पेट्रोल दे'। शिव चाचा के बेटों की ही बात है, दूसरों की नहीं। तो क्या मैं पेट्रोल दूंगा?" तब मैंने कहा, 'तो उस बात को भी छोड़ो, बंद रखो'। इसे शिव चाचा कहाँ से याद आ गए! देखो न इसे, अपना और सिर्फ अपना ही याद आता है, बाहर का कोई भी याद नहीं आता। दिमाग़ की कैसी तुमाखी! इसलिए फिर मैंने कहा, 'भाई, तो अब तू क्या करेगा? तू तो एक भी बात नहीं मानता है। अरे, एक शब्द तो मान मेरा'। तब उसने कहा, 'नहीं, ऐसी नौकरी-वौकरी नहीं चाहिए। हमें तो नौकरी ऐसी करनी है कि कोई ऐसा नहीं कहे कि तू ऐसे कर'। तब मैंने कहा, 'भाई, अगर ऐसा नहीं हो पाएगा तो तू क्या करेगा?' तब उसने कहा, 'हम अपने घर चले जाएँगे वापस'। उसने कहा, 'लेकिन दो महीने हम यहाँ रहकर ढूँढेंगे, उसके बाद जाएँगे'। तब मैंने कहा, 'दो के बजाय छ: महीने रह न!' तो महीने-डेढ़ महीने रहा था। उल्टा बोले फिर भी देखते थे पॉज़िटिव रोज़ बा के साथ बैठकर कहता था, 'बा, चिंता मत करना, मैं कमाऊँगा न, तो सब दे दूंगा'। फिर मैंने एक दिन उसकी जेब में देखा तो बेचारे की जेब में बारह-चौदह आने थे। एक दिन मुझे बुखार था और वह जेठा भाई के वहाँ गया होगा, वहाँ जेठा भाई की पत्नी ने पूछा कि, 'चाचा की तबीयत कैसी है?' तब उसने कहा, 'उन्हें बुखार आया है, तो उससे मुझे क्या लेना-देना? बुखार तो आता रहता है!' तब फिर जेठा भाई की पत्नी को गुस्सा आ गया, उन्होंने यहाँ आकर बा को बताया, तब बा ने कहा कि, 'यह ऐसा कह रहा है'। तब मैंने बा से कहा, 'भले ही कहे। अब आप क्या करोगी? कोई और उपाय है? इसलिए इसका ऐसा उपाय करो ताकि हमें झंझट न हो'। हमने कैसे अहिंसक उपाय किए! कोई भी झंझट नहीं। दो-तीन दिन बाद उसने कहा, 'मुझे घर जाना है'। तो वह कपड़े वगैरह लेकर जाने लगा, मुझे तो पता भी नहीं चला। उसके बाद फिर शंकर भाई आए, तब उन्होंने कहा कि, 'विठ्ठल भाई तो गए'। मैंने कहा, 'अरे, उनके पास
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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