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________________ [9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे 321 चोर है। मुझे सब प्रमाण मिल जाते, सबकुछ मिल जाता फिर भी नहीं कहता था क्योंकि मैं इंसान को चोर नहीं कहता हूँ, मैं चोर को चोर कहता हूँ। प्रश्नकर्ता : चोर को, इंसान को नहीं! दादाश्री : नहीं। आप जिस तरह से कहते हो वैसा नहीं। मैं ऐसी दृष्टि से कहता हूँ कि जिसका स्वभाव हमेशा चोरी करने का है, उसे मैं चोर कहता हूँ सभी लोगों को मैं चोर नहीं कहता और जो संयोगवश चोरी करता है, उसे मैं चोर नहीं कहता। मेरी बात समझ में आ जाए तो बहुत कीमती है। दुनिया के लोग किसे पकड़ते हैं? दुनिया के लोग किसे चोर कहते हैं? जो पकड़ा जाता है, उसे। अरे, उसने जिंदगी में कभी भी ऐसा नहीं किया, आज पकड़ा गया तो क्या हमेशा के लिए उसकी इज़्ज़त खराब कर दोगे? मैं ऐसा सब नहीं करता। यों तो संयोगवश राजा भी भीख माँग सकता है। वह राजा अपना राजसीपन नहीं छोड़ देता। अतः हमारा यह वाक्य बहुत बड़ा है। समझने जैसा है यह वाक्य! पूरी दुनिया इसी में फँसी है, 'आज पकड़ा गया, मैंने खुद देखा'। अरे भाई! उसका पहले का चरित्र तो देख! हज़ारों रुपए दो तब भी न ले, ऐसा इंसान लेकिन उसका चोरी करने का समय आ गया तो उसके चरित्र को धूल में मिला दोगे? एक तो आप अपने आपको बिगाड़ रहे हो! और हमेशा के लिए उसे भी बिगाड़ रहे हो। उस पर आरोप लगाओगे, तो उसे बहुत आघात लग जाएगा। अगर हमारा यह वाक्य समझ में आ जाए तो बहुत कीमती है। संयोगवश चोर को चोर कहते हैं हम। रावण ने और कुछ नहीं किया था, संयोगवश सिर्फ कुदृष्टि डाली। उसने एक बार ही ऐसा सोचा कि मुझे इसे पकड़कर लाना है। तो उस पर दुनिया ने इतना सब कर दिया! जो सब से बड़ा साइन्टिस्ट है, वैज्ञानिक है, उसे भगवान ने भी 'भगवान' कहा है। वे प्रतिनारायण कहलाते हैं, और इस देश के लोग उनकी निंदा करते हैं। इस देश का क्या भला होगा फिर? उसके पुतले जलाते हैं ! धन्य है इस दुनिया को!
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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