SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 ) में डाल दिए थे, वे मुझे मिल गए' । फिर अगर कोई कहे कि, 'वह भाई आपकी जेब में हाथ डाल रहे थे। क्या इसमें से कुछ कम हुआ है?' मैंने कहा, 'नहीं, जो मेरी अंटी में थे और वे मुझे मिल गए' । लेकिन मुझे यह पता चल गया कि किसने हाथ डाला था। अब उन भाई के लिए तो मैं ऐसा मानता हूँ कि वे चोरी कर ही नहीं सकते। मेरा उनके प्रति ऐसा अभिप्राय था । अब एक बार अभिप्राय बनाया तो बस, उसे फिर बदलना नहीं है । 320 अरे! हमने खुद चोर को देखा हो, कोई शंका नहीं रहे, और हमने दूर से देख लिया हो, फिर भी हम उसे चोर नहीं कहते। यदि मैं उन्हें चोर कहूँ तो पहले मैंने ही कहा था न कि, 'यह चोर नहीं हो सकता' । फिर मेरा ही सर्टिफिकेट बदलने का समय आया ? तो क्या मैं एक कॉलेज के सर्टिफिकेट से भी गया - बीता हूँ ? लो ! तो इसका प्रमाण क्या है? तो कहा, 'हमारा नियम' । मैं मॉरल खरीद लेता था फिर यदि अगले दिन जब वे आए तो उन्हें पता नहीं चले उस प्रकार से कोट ज़रा अलग रख देंगे, बस उतना ही और कोट में ज़्यादा पैसे नहीं रखेंगे। कोट में जितना कुछ निकालते हैं, उतना रख देना और वह भी इस तरह से कि उसे पता न चले। उसे अपमान महसूस न हो, उस प्रकार से! लेकिन उसके प्रति हम ऐसा मन नहीं रखते या उनके प्रति फिर प्रेजुडिस नहीं रहता कि ' ले गया तो अब नहीं रखना चाहिए'। प्रश्नकर्ता : उसे दूसरी बार पैसे लेने का चान्स नहीं देंगे ? दादाश्री : नहीं देंगे और फिर भी अगर उसे ऐसा चान्स मिल जाए तो हम ऐसा प्रेजुडिस नहीं रखेंगे कि वह ले गया। मैं मॉरल खरीद लेता था । वह चोरी करता था फिर भी उसे वापस बुलाता था लेकिन सावधान रहता था । कोट निकालकर वापस उस जगह पर नहीं रखता था और उससे ऐसा नहीं कहता था कि तू
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy