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________________ [9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे 301 वचन की तुलना करने बैठ गया! लेकिन नशा उतार दिया एकदम से, मार-ठोककर। जब मैंने उससे ऐसा कहा, तब मेरी वाइफ वहीं पर खड़ी थीं तो मेरी वाइफ ने कहा, 'ऐसा नहीं कहना चाहिए'। मैंने कहा, 'तो फिर क्या कहना चाहिए? उसका रोग नहीं निकाला तो फिर मैं दादा कैसा? दादा बना हूँ'। और शब्द भी कैसे बोले! ऐसे शब्द किसी ने कहे होंगे कि 'नौ महीने तेरी माँ ने तुझे पेट में रखा था, मैं जानता हूँ'। ऐसा मुँह पर कहा, लेकिन उसका रोग निकल गया। नशा उतर ही जाएगा न! हमारे ये सख्त शब्द नशा उतारने के लिए हैं। इस सख्ती में और कुछ भी नहीं था। यह नशा उतारने की दवाई है! यह तो निरा नशा, नशा, नशा! प्रश्नकर्ता : चुपड़ने की पी ली है न? दादाश्री : चुपड़ने की पी गए, क्या हो सकता है फिर? प्रश्नकर्ता : इसलिए दादा, पत्नी का कहा सुनना ही नहीं चाहिए न? दादाश्री : यह तो तुझे समझना चाहिए या नहीं? जब पत्नी आए तब वापस बदल नहीं जाएगा न? ऐसा! सचमुच पक्का है तू! गुरु (पत्नी) का भी सुनना है। ऐसा नहीं है कि गुरु का सुनना ही नहीं है, लेकिन अगर (किसी बात में) मुकर जाने को कहे तो वहाँ पर नहीं। प्रश्नकर्ता : इसीलिए दो कान दिए हैं न, दादा। एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकालने के लिए। दादाश्री : हाँ, पक्का बनिया भाई! कह रहा है, दो कान इसीलिए दिए हैं। आप समझे न? __अपने महात्मा व्यवहार में भी दुःखी न हों, ऐसे सारे रास्ते बताते हैं। अपने खुद के माँ-बाप चाहे कैसे भी हों फिर भी स्त्री (पत्नी) का मानें ही क्यों? आपको कैसा लगता है ? प्रश्नकर्ता : ठीक है, सही बात है।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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