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________________ 302 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दादाश्री : तो अब माँ-बाप की सेवा करना ठीक से। बार-बार यह लाभ नहीं मिलेगा। सिर दुःख जाए ऐसे शब्द बोल देते थे ज्ञान से पहले हमें पहले उल्टा बोलने की बहुत आदत थी, उल्टा-सीधा बोलने की आदत। उल्टा यानी कि सिर दुःख जाए, वैसा उल्टा। हेडेक हो जाए, ऐसे शब्द थे हमारे। कैसे? प्रश्नकर्ता : हेडेक। दादाश्री : हाँ, तो हमारे चचेरे भाई हम से बीस साल बड़े थे, बीस नहीं, पच्चीस साल। यदि आज होते तो 95 साल के होते, एक दिन वे आए, पोटली लेकर। तब मैं बा के साथ बैठा था। यह तो हमारी हेडेक की बात बता रहा हूँ, हमारी कैसी दशा थी! सुनना है सभी को? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : ऐसा? हाँ, सभी सहमत हों तभी, वर्ना यह कोई बताने जैसी बात नहीं है। तब मैंने बा से कहा, 'आपके भतीजे आए हैं। इस तरह से कहा ताकि वे भाई सुन लें, उन्हें गुस्सा दिलवाने के लिए। मैं समझ गया कि वे किसलिए आए हैं ! रमण की शादी थी, और बारात धर्मज जाने वाली थी। इन्हें वहाँ पर नहीं जाना था इसलिए यहाँ आ गए। उन्होंने मुंबई में काम है ऐसा बहाना बनाया। उन्होंने कहा, 'मुझे वहाँ मुंबई जाकर सब ठीक करना है न, इसलिए मुंबई जाना है। वे बहाना बनाकर घर से निकले तो मैं समझ गया कि इन्होंने बहाना बनाया है। मैं जानता था कि इन दोनों के बीच परेशानी हुई होगी इस बार। इसलिए मैंने बा से कहा, 'ये आपके भतीजे आए हैं!' उन्होंने कहा, 'अरे, बा ने मुझे देख लिया है, तो तू ऐसा क्यों कह रहा है? बीच में अक्ल क्यों लड़ा रहा है'। तब मैंने कहा, 'मैं समझ गया हूँ, आप क्यों आए हैं'। तब उन्होंने कहा, 'बता
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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