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(१.९) स्वभाव और विभाव के स्वरूप
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अर्थात् खुद के मोक्ष में ले जाने वाली वस्तु और विभाव, संसार में भटकाने वाली चीज़ है। उस विशेष परिणाम को यदि समझ लेंगे तो यह पज़ल सॉल्व हो जाएगी, वर्ना सॉल्व नहीं हो सकती।
प्रश्नकर्ता : आत्मा हमेशा ऊर्ध्वगति में जाता है न?
दादाश्री : ऐसा नहीं कि ऊर्ध्वगति में जाता है, स्वभाव ही ऊर्ध्वगामी है।
प्रश्नकर्ता : ऊर्ध्वगामी स्वभाव है फिर भी अधोगति में क्यों जाता है?
दादाश्री : ऊर्ध्वगामी स्वभाव है, तो उसे जो दूसरी बला चिपकी रहती हैं और यदि वे वज़नदार हों तो वह अधोगामी हो जाता है।
उस विशेष परिणाम को यदि समझें तो पज़ल सॉल्व हो जाएगी, वर्ना सॉल्व नहीं होगी। इस 'वि' के विभाव को विरुद्ध भाव समझ लिया है।
नहीं है कर्तापन, स्वभाव में सभी को नहाना हो और यह इलेक्ट्रिसिटी बंद हो जाए और यह जो पानी है, उसे तू गरम करने लगे, केरोसीन स्टोव से या किसी और से, तो क्या होगा? टाइम लगेगा?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : विभाव अर्थात् संसार खड़ा करना। वह पानी को गरम करने जैसा मेहनत वाला काम है और स्वभाव में जाना अर्थात् लकड़ियाँ निकालकर वापस ठंडा करना। तभी मोक्ष में जाएँगे। स्वभाव में क्रिया नहीं है, मेहनत नहीं है। स्वभाव को समझना होता है। यह जो पानी का उदाहरण दिया, आपको समझ में आ रहा है?
किसी भी चीज़ को अपने स्वभाव में जाने के लिए मेहनत नहीं करनी होती। जब विशेष भाव में जाना हो तब सभी को मेहनत करनी पड़ती है।