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________________ आप्तवाणी - १४ ( भाग - १ ) दादाश्री : पुद्गल को पुद्गल का स्वभाव और आत्मा को आत्मा का स्वभाव, फिर धर्मास्तिकाय को धर्मास्तिकाय का स्वभाव और काल को काल का स्वभाव । हर एक स्वभाव से । ११२ प्रश्नकर्ता : बीज स्वभाव से उगता है। पानी, हवा, ज़मीन वगैरह सभी संयोग उगाते हैं । दादाश्री : वे सभी संयोग स्वभाव से चल रहे हैं । पूरी दुनिया स्वभाव से ही जी रही है । इस दुनिया को कौन चलाता है ? तो कहते हैं, स्वभाव ही चलाता है । किस तरह से उत्पन्न हुई ? तो कहते हैं, ‘यह स्वभाव से उत्पन्न हुई है ' । स्वभाव में से विभाव किस तरह से हो गया? तो कहते हैं, 'ये जब इकट्ठे होते हैं तो उनका स्वभाव ही ऐसा है कि यह विभाव हो जाता है'। प्रश्नकर्ता : लेकिन विभाव में जो गुण प्रकाशमान हुए, वे क्या स्वभाव के प्रकाश से प्रकाशमान हुए हैं ? दादाश्री : स्वभाव का उससे लेना-देना नहीं है, स्वभाव तो स्वभाव में रहा। उसका और उन सभी का कोई लेना-देना नहीं है और विभाव खुद के नए ही गुण उत्पन्न हो गए। यह दुनिया स्वभाव से चल रही है और विभाव से टकराव हुए। के (व्यवहार) आत्मा या तो विभाव भाव कर सकता है या फिर स्वभाव भाव कर सकता है। आत्मा ये दो ही भाव कर सकता है। आत्मा अन्य कुछ नहीं कर सकता । आत्मा ने कोई क्रिया की ही नहीं है, करता भी नहीं है और करेगा भी नहीं । स्वभाव भाव अर्थात् खुद अपने आप में ही रहना और विभाव भाव अर्थात् देहाध्यास । विशेष भाव में भी बरत सकता है। प्रश्नकर्ता : तो जो लोग विपरीत प्रकार से बरतते हैं ? दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है । आत्मा का स्वभाव और विभाव। उस विभाव से यह संसार खड़ा हो गया है, विभाव दशा है। यह स्वभाव
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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