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________________ १९ कुमारपाल को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और दूसरे ही दिन उसने गुरुदेवश्री को राजसभी में पधारने के लिए आमंत्रण भेजा । शासन प्रभावना के निमित्त को जानकर हेमचन्द्राचार्यजी राजसभा में पधारे । कुमारपाल ने उनका भव्य स्वागत किया और अपने अपराध की क्षमापना मांगकर गुरुदेवश्री को राज सिंहासन पर बैठने के लिए आग्रह करने लगा । गुरुदेव ने कहा : यह आसन हमारे लिए अनुचित हैं । गुरुदेव ! आप ही इस राज्य के स्वामी हो... यह राज्य स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करे ।' हमें राज्य से कुछ भी प्रयोजन नहीं है....' आचार्यश्री ने कहा : आपके उपकार के ऋण को में कैसे वापस लौटा सकता हूँ ? गुरुदेव ने कहा- ' - 'जैन धर्म की उन्नति करो । " कुमारपाल ने हाथ जोड़कर गुरुदेव की आज्ञा को शिरोधार्य की और गुरुदेव श्री को प्रतिदिन धर्म सुनाने के लिए राजसभा में आने के लिए प्रार्थना की । कुमारपाल की इच्छानुसार आचार्य श्री प्रतिदिन राजसभा में आकर धर्म का उपदेश देने लगे । आचार्य श्री की अमृतवाणी को सुनकर कुमारपाल महाराजा के हृदय में दिन प्रतिदिन धर्म के प्रति श्रद्धा बढ़ने लगी । माँ साध्वीजी हेमचन्द्राचार्य जी की माँ साध्वीजी प्रवर्तिनी श्री पाहिनीजी का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन गिर रहा था ... फिर भी उसकी समाधि अत्यन्त ही अनुमोदनीय थी । हेमचन्द्राचार्यजी अपनी माता को समाधि देने के लिए समाधि दायक जिन वचनों का श्रवण कराया । अन्य श्रावक श्राविका ने साध्वीजी पाहिनी के निमित्त अनेक विभ पुण्यकर्म कहे और उस समय कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य जी ने भी अपनी माँ साधी की समाधि के लिए तीन लाख नवीन श्लोक रचना करने का पुण्यकर्म कहा । माँ साध्वी के मुख पर प्रसन्नता छा गई और अत्यन्त ही समाधिपूर्वक उसने इस नश्वर देह का त्याग कर दिया | जीवदया का उपदेश हेमचन्द्राचार्य जी को अमृतमयवाणी और उपदेश को सुनकर कुमारपाल ने जीवन भर के लिए मद्य - मांस- शिकार आदि सातों व्यसनों का त्याग कर दिया । कुमारपाल ने कहा ‘भगवंत ! आपका मेरे ऊपर जो उपकार हैं उसके ऋण को दूर करने के लिए मुझे आज्ञा दीजिए । हेमचन्द्राचार्यजी ने कहा, राजन् ! यदि तेरे दिल में मेरे प्रति भक्ति हैं तो इन तीनों बातों का
SR No.034255
Book TitleSiddh Hemhandranushasanam Part 01
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorUdaysuri, Vajrasenvijay, Ratnasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages658
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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