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________________ कुमारपाल ने नम्र होकर कहा, 'यदि मुझे राज्य मिला तो वह आपको भेट कर निरंतर आपके चरणों की सेवा करूंगा।' आचार्यश्री ने कहा, 'हमें राज्य से कोई प्रयोजन नहीं हैं... परन्तु तुझे राज्य मिले तो तुम जिन शासन की प्रभावना करना। 'गुरुदेव ! मैं आपके. उपकार को कभी नहीं भूलंगा।' .. उदयन मंत्री ने कुमारपाल को अपने गुप्तगृह में छुपाया । कुछ दिनों के बाद सिद्धराज को इस बात का समाचार मिला । भयभीत होकर कुमारपाल आचार्यश्री के पास आए और बोले, 'आप मेरी रक्षा करो ।' आचार्यश्री ने उसे पुस्तको के भंडार में छिपा दिया । सिद्धराज के सैनिक आए और उन्होंने कुमारपाल की चारों ओर शोध की परन्तु कुमारपाल मिले नहीं । सैनिको के चले जाने के बाद गुप्त रूप से कुमारपाल ने वहाँ से विदाई ले ली । धीरे धीरे समय बीतने लगा और संवत् ११९९ के कार्तिक शुक्ला तृतीया के दिन सिद्धराज ने परलोक की ओर प्रयाण कर दिया । गुजरात के भावि सम्राट के लिए शोध प्रारम्भ हुई और अन्त में कुमारपाल की पसंदगी की गई। संवत ११९९ के मार्गशीर्ष कृष्णा चतुर्थी के शुभ दिन कुमारपाल महाराजा गुजरात के सम्राट् बने । उस समय उनकी उम्र ५० वर्ष की थी । कुमारपाल का राज्याभिषेक श्री देवी ने किया । स्त्रियों ने आनंद में धवल मंगल गीत गाए। . कुमारपाल ने उदयन को मुख्यमंत्री बनाया और अन्य उपकारियों का भी उसने यथा योग्य सम्मान किया कुमारपाल के राज्याभिषेक के समाचार जानने के वाद श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यजी भी विहार कर पाटण पधारे । उदयनमन्त्री ने उनका भव्य स्वागत किया । आचार्यश्री ने मत्री को पछा, 'उदयन' क्या राजा ने मुझे याद किया था । उदयन ने कहा, 'नहीं ! गुरुदेव ।' . . आचार्यश्री ने सोचा, 'सुख में डूबे हुए व्यक्ति को धर्म याद नहीं आता हैं ।' आचार्यश्री ने कहा, 'उदयन ! आज कुमारपाल को कहना कि आज नई रानी के भवन में न जाय ।' उदयन ने कुमारपाल को बात की, और कुमारपाल ने उदयन की बात मान ली। उस रात्रि में बिजली गिरने से नई रानी का महल धराशायी होने के समाचार जव कुमारपाल को मिले, तब उसने उदयन को पूछा 'महल में नहीं जाने की खबर तुम्हे किसने दी ?' उदयन ने कहा, ' हेमचन्द्राचार्यजी ने ।' 'अहो ! आज गुरुदेव ने मेरी जान बचाई और में गुरुदेव को ही भूल गया हूँ.... धिक्कार है मुझ कृतघ्न को।'
SR No.034255
Book TitleSiddh Hemhandranushasanam Part 01
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorUdaysuri, Vajrasenvijay, Ratnasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages658
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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