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________________ पालन करो 1. प्राणी मात्र के वध को बन्द कराकर सर्व जीवों को अभयदान दो। 2. प्रजा को अधोगति से बचाने के लिए जुआँ, मद्य, मांस शिकार आदि पर प्रतिबन्ध लगाओ। 3. भगवान् महावीर की आज्ञाओं का पालन कर उनका प्रचार करो ! कुमारपालने हेमचन्द्राचार्य जी की इन सभी आज्ञाओं को शिरोधार्य की और अपने विशाल राज्य में जीव हिंसा निषेध का फरमान निकाला और सभी प्रजाजनों को आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति किसी भी निरपराधी जीव की हिंसा न करे ।। हेमचन्द्राचार्य श्री की उपदेशवाणी का श्रवण कर अठारह देशों में जीव दया का पालन होने लगा। कुमारपाल की आशा थी कि कोई भी व्यक्ति बातचीत के दौरान भी हिंसक शब्दो का प्रयोग न करें। आचार्य जी की वाणी में एक जादुई प्रभाव था । निःस्वार्थभाव से युक्त उनकी अमृतसम धर्मदेशना का श्रवण कर प्रजाजन स्वेच्छा से ही हिंसा आदि पापों का त्याग करने लगे और सर्वत्र प्रजाजनों के बीच प्रेम-मैत्री-स्नेह और औदार्य का बातावरण बनने लगा। सैकड़ो वर्षों के बाद भी...आज/वर्तमान में भी गुजरात की प्रजा के जनजीवन. में अहिंसा व जीवदया के जो संस्कार दिखाई देते हैं, उन संस्कारों के बीजारोपण में कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य भगवंत और कुमारपाल महाराजा का बहुत बड़ा योगदान रहा है । कुमारपाल महाराजा की आज्ञा से अठारह राज्यों में सभी कल्लखाने बन्द हो गए और हिंसा का व्यवसाय करने बालों को अन्य रोजगार भी दिया गया । एक बार नवरात्रि के दिनों में कुलदेवी के पूजारियो ने आकर कहा, 'राजन् कुलदेवी को प्रतिवर्ष नवरात्रि से भैसों का बलिदान दिया जाता है, अतः कृपया आप इनकी व्यवस्था कीजिए।' कुमारपाल ने जाकर हेमचन्द्राचार्य जी से बात की । आचार्यश्रीने कहा, देव/देषी कभी कवलाहार नहीं करते हैं तो फिर मांस भक्षण की तो बात ही कहाँ ? निरपराधी जीवों की हत्या करने से पूजारी केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं । कुमारपाल ने भैसों का बलिदान देने से इनकार कर दिया और इसके बदले में कुमारपाल ने जींदे 700 में से देवी के मन्दिर में रखवा दिए और बाहर से द्वार बन्द कर दिया । दूसरे दिन मन्दिर खोला गया...तो वे पशु वैसे ही शांत खडे थे । देवी ने किसी भी पशु का भक्षण नहीं किया था। गुस्से में आकर कुमारपाल ने उन पूजारियों को बांटा और कुलदेवी की सुगंधी धूप, पुष्प आदि से पूजा की। आसो शुक्ला दशमी के दिन जब कुमारपाल ध्यान में बैठा था तब कंटकेश्वरी देवा प्रकट हई ओर उसने कहा, मैं कुलदेवी हूँ'...तूने पशुओं का बलिदान बन्द क्यों कर दिया ?'
SR No.034255
Book TitleSiddh Hemhandranushasanam Part 01
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorUdaysuri, Vajrasenvijay, Ratnasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages658
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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