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(३५) एवं छेद भेद काटकर अन्दरसे रक्त, राद, चरबी,
निकाले. ३
(३६),, एवं शीतल पाणी, गरम पाणी कर, विशुद्ध होने पर भी धोवे. ३
(३७) एवं विशुद्ध होने पर भी अनेक प्रकार लेपनकी जातिका लेप करे ३. ( ३८ ) एवं अनेक प्रकारका मालिस मर्दन करे ३. (३९ ) एवं अनेक प्रकारके सुगंधि पदार्थ तथा सुगन्धि धूपादिकी जाती लगाके अपने शरीरको सुवासित बनावे ३.
(४०) एवं अपने शरीर में किरमीयादिको अंगुलि कर निकाले. ३ ___यह सोलासे चालीश तक पचीश सूत्रोंका भावार्थ-उक्त कार्य करनेसे प्रमादवृद्धि, अस्वाध्यायवृद्धि शस्त्रादिसे आत्मघात, रोगवृद्धि तथा शुश्रूषावृद्धि अनेक उपाधिये खडी हो जाती है. वास्ते प्रायश्चितका स्थान कहा है. उत्सर्ग मागवाले मुनियोंको रोगादिकों सम्यक् प्रकार से सहन करना और अपवाद मार्गवाले मुनियोंको लाभालाभका कारण देख गुरु आज्ञाके माफिक वर्ताव करना चाहिये. यहांपर सामान्य सूत्र कहा है.
(४१), अपने दीर्घ-लम्बा नखोंको ( शोभा निमित्त ) कटावे, समरावे. ३ ... (४२), अपने गुह्य स्थानके दीर्घबालोंको कटावे, कपाधे, समरावे.३
(४३),, अपनी चक्षुके दीर्घ बालोंको कटावे, समरावे.३ (४४) एवं जंघोंका बाल ( केश). (४५.) एवं काखका बाल. (४६) दाढी मुंछोका बाल.