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[२] जिनाज्ञा रखे, परन्तु गच्छमर्यादा नहीं रखे. [३] दोनों रखे. [४] दोनों नहीं रखे.
भावार्थ-द्रव्यक्षेत्र देखके आचार्य महाराज मर्यादावादी हो कि--साधु साधुओंको वाचना देवे, साध्वी साध्वीयोंको वाचना दे. और जिनाज्ञा है कि योग्य हो तो सबको भी आगमवाचना दे. परन्तु देशकालसे आचार्यमहाराजकी मर्यादाका पालन, भविज्यमें लाभका कारण जान करना पडता है. (१०) च्यार प्रकारके पुरुष होते है[१] प्रिय धर्मी-शासनपर पुर्ण प्रेम है, धर्म करने में
उत्साही है, किन्तु द धर्मी नहीं है, परिषह सहन
करने को मन मजबुत रखने में असमर्थ है. [२] दृढ धर्मी है, परन्तु प्रियधर्मी नहीं है. [३] दोनों प्रकार है.
[४] दोनों प्रकार असमर्थ है. (११) च्यार प्रकारके आचार्य होते है[१] दीक्षा देनेवाले आचार्य हो, किन्तु उत्थापन नहीं
करते है. [२] उत्थापन करते है, परन्तु दीक्षा देनेवाले नहीं है. [३] दोनों है. [४] दोनों नहीं है.
भावार्थ-एक आचार्य विहार करते आये, वह वैरागी शिष्योंको दीक्षा देके वहां निवास करनेवाले साधुवोंको सुप्रत
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