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१९२ [४] गच्छकी अन्दर साधुवोंका संग्रह भी नहीं करे,
___ और अभिमान भी नहीं करे, एवं वस्त्र, पात्रादि. (६) च्यार प्रकारके पुरुष होते है[१] गच्छके छते गुण दीपावे, शोभा करे, परन्तु अभि
मान नहीं करे एवं चौभंगी. (७) च्यार प्रकारके पुरुष होते है. [१] गच्छकी शुश्रूषा ( विनय भक्ति) करते है, किन्तु
अभिमान नहीं करते. एवं चौभंगी. एवं गच्छकी अन्दर जो साधुवोंको अतिचारादि हो, तो उन्होंको आलोचना करवाके विशुद्ध करावे. (८) च्यार प्रकारके पुरुष होते है[१] रुप-साधुका लिंग, रजोहरण, मुखवस्त्रिकादिको छोडे
( दुष्कालादि तथा राजादिका कोप होनेसे समयको जानके रुप छोडे ) परन्तु जिनेन्द्रका श्रद्धारुप धर्मको
नहीं छोडे. [२] रुपको नहीं छोडे ( जमालीवत् ) किन्तु धर्मको छोडे. [३] रुप और धर्म-दोनोको नहीं छोडे.
[४] रुप और धर्म-दोनोंको छोडे, जैसे कुलिंगी श्रद्धासे भ्रष्ट और संयमरहित. (९) च्यार प्रकारके पुरुष होते है
[१] जिनाज्ञारुप धर्मको छोडे, परन्तु गच्छमर्यादाको नहीं छोडे. जैसे गच्छमर्यादा है कि-अन्य संभोगीको वाचना नहीं देना, और जिनाज्ञा है कि-योग्य हो उस सबको वाचना देना. गच्छमर्यादा रखनेवाला सबको वाचना न देवे.