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सात पद्वीयोंसे पछी देना कल्पै. अगर कंठस्थ करनेका स्वीकार कर, फिरसे कंठस्थ नहीं करे तो, उसे न तो पद्वी देना कल्पै और न उस शिष्यको पद्वी लेना कल्पै.
(१६) इसी माफिक नवयुवति तरुण साध्वीको भी समझना चाहिये. परन्तु यहां पद्वी प्रवर्तणी तथा गणविच्छेदणीदोय कहना. शेष साधुवत्.
(१७) स्थविर मुनि स्थविर भूमिको प्राप्त हुवे, अगर आचारांग और निशीथसूत्र भूल भी जावे, और पीछे से कंठस्थ करे, न भी करे, तो उन्होंको सातों पद्वीसे किसी प्रकारकी भी पद्वी देना कल्प. कारण कि चिरकालसे उन महात्मावोंने कंठस्थ कर उसकी स्वाध्याय करी हुइ है. अगर क्रमसर कंठस्थ न भी हो, तो भी उसकी मतलब उन्होंकी स्मृतिमें जरूर है, तथा चिरकाल दीक्षापर्याय होनेसे बहुतसे आचार-गोचर प्रवृत्ति उन्होंने देखी हुइ है... .
(१८) स्थविर, स्थविरकी भूमि (६० वर्ष ) को प्राप्त हुवा, जो आचारांग और निशीथसूत्र विस्मृत हो गया हो, तो वह बैठे बैठे, सोते सोते, एक पसवाडे सोते हुवे धीरे धीरेसे याद करे. परन्तु आचारांग और निशीथ अवश्य कंठस्थ रखना चाहिये. कारण-साधुवोंकी दीक्षासे लेके अन्त समय तकका व्यवहार आचारांगसूत्र में है, और उससे स्खलित हो, तो शुद्ध करनेके लीये निशीथसूत्र है.
(१९) साधु साध्वीयोंके आपसमें बारह' प्रकारका संभोग है. अर्थात् वस्त्र पात्र लेना देना, वांचना देना इत्यादि. उस साधु
साध्वीयोंको आलोचना लेना देना आपसमें नहीं कल्पै. अर्थात् . . आलोचना करना हो तो साधु साधुवोंके पास और साध्वीयों
. १ बारह प्रकारका संभोग समवायांगजी सूत्रमें देखो.