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आपको यह प्रवर्तणीके कहनेसे पद्वी दी जाती है, परन्तु अन्य कोइ पछी योग्य साध्वी होगी, तो आपको यह पद्वी छोडनी होगी. बादमें कोइ साध्वी पद्वी योग्य हो, तो पहलेसे पद्वि छोडा लेनी. इसपर पद्वी छोड दे तो किसी प्रकारका प्रायश्चित्त नहीं है, अ. गर वह पद्विको नहीं छोडे तो जितने दिन पद्वी रखे, उतने दिन छेद तथा तपप्रायश्चित्त होता है. अगर उसकी पट्टी छोडने में साध्वी और संघ प्रयत्न न करे, तो उस साध्वी तथा संघ सबको प्रायश्चित्त के भागी बनना पडता है.
(१४) इसी माफिक प्रवर्गणी साध्वी प्रबल मोहनीयकर्म के उदयसे कामपीडित हो, फिर संसारमें जाते समयकाभी सूत्र कहेना. भावना चतुर्थ उद्देशा माफिक समझना..
( १५ ) आचार्य महाराज अपने नवयुवक तरुण अवस्थावाले शिष्यको आचारांग और निशीथ सूत्रका अभ्यास कराया हो, परन्तु वह शिष्यको विस्मृत होगया जाण आचार्यश्रीने पु. छा कि-हे आर्य! जो तुमको आचारांग और निशीथसूत्र विस्मृत हुवा है, तो क्या शरीरमें रोगादिकके कारणसे या प्रमादके कारणसे ? शिष्य अर्ज करे कि हे भगवन् ! मुजे प्रमादसे सूत्र वि. स्मृत हुवा है. तो उस शिष्यको जावजीवतक सातों पछीयोंसे किसी प्रकारको पद्वी देना नहीं कल्पै.कारण अभ्यास कीया हुवा ज्ञान विस्मृत हो गया, तो गच्छका रक्षण कैसे करेगा? अगर शिष्य कहे कि-हे भगवन् ! प्रमादसे नहीं, किन्तु मेरे शरीर में अमुक रोग हुवा था, उस व्याधिसे पीडित होनेसे सूत्रों विस्मृत हुवा है. तब आचार्यश्री कहे कि-हे शिष्य ! अब उस आचारांग और निशीथको फिरसे याद कर लेगा? शिष्य कबूल करे किहाँ मैं फिरसे उस सूत्रोंको कंठस्थ कर लूंगा. तो उस शिष्यको