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(११) जो साध्वी आचारांग और निशीथ सूत्रकी जानकार अन्य साध्वीयोंको ले अग्रेसर विहार करती हो, कदाचित् वह आगेवान साध्वी काल कर जावे, तो शेष साध्वीयोंकी अन्दर जो आचारांग और निशीथ सूत्रकी जानकार अन्य साध्वी हो, तो उसको आगेवान कर सब साध्वीयों उसकी निश्रामें विचरे. कदाच ऐसी जानकार साध्वी न हो तो उस साध्वीयोको अन्य दिशामें जानकार साध्वीयां विचरती हो, वहांपर रहस्ते में एकेक रात्री रहके जाना कल्पै. रहस्तेमे उपकार निमित्त रहना नहीं कल्पै. अगर शरीर में रोगादि कारण हो, तो जहांतक रोग न मिटे, वहांतक रहना कल्पै. रोग मुक्त होनेपरभी अन्य साध्वीयां कहे कि-हे आर्या ! एक दो रात्रि और ठेरो, ताके तुमारा शरीरका विश्वास हो, उस हालतमें एक दो रात्रि रहना कल्पै. परन्तु अधिक ठहरना नहीं कल्पे. अगर अधिक रहे, तो जितने दिन रहे, उतने दिनोंका छेद तथा तपप्रायश्चित्त होता है.
(१२ ) एवं चतुर्मास रहे हुवेका भी अलापक समझना.
भावार्थ-अपठित साध्वीयोंको रहेना नहीं कल्पै. अगर चातुर्मास हो, तो भी वहांसे विहार कर, आचारांग, और निशीथ मूत्रके जानकारके पास आजाना चाहिये.
(१३ ) प्रवर्तणी अन्त समय कहे कि हे आर्या ! में काल कर जाउं, तो मेरी पढ़ी अमुक साध्वीको दे देना. अगर वह साध्वी योग्य हो तो उसे पद्वी दे देना. तथा वह साध्वी पदवीके योग्य न हो और दुसरी साध्वीयां योग्य हो, तो उसे पद्वि देना चाहिये. दुसरी साध्वी पद्वि योग्य न हो, तो जिसका नाम बतलाया था, उसे पति दे देना, परन्तु यह सरत कर लेना कि-अबी हमारे पास पद्वीयोग्य साध्वी नहीं है वास्ते