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(५३) है उसमें विस्तारसे रखे हुवे दिशा तथा द्रव्यादिकों संक्षिप्त करना निस्के १४ नियमकों धारण करना।..
(६) पौषधव्रत-आहार पौषद जिस्में भी (१) सर्व माहारका त्यागरूप तथा देश माहारके त्यागरूप ( एकासना तथा तथा तिविहार व्रत ) (१) शरीर विभूषाका त्यागरूप पौषद (३) ब्रह्मचार्यव्रत पालन करने रूप पौषद (४) व्यापारका त्याग रूप पौषध यह च्यारों प्रकारके पौषदसे पौषद करना ।
(७) अतिथी संविभाग-साधु साध्वियोंकों फासुक निर्दोष आहार पाणी खादम (मेवा सुखडी) सादिम (लवग इलायची) वस्त्र पात्र कंम्बल रजोहरण पाट फलग शय्या संस्तारक भौषध भेषज एवं १४ प्रकारसे दान देना । साधु अभाव स्वधर्मी माइयोंकों भी भोजन कराना 'अपच्छमा' अन्त समय आलोचना पूर्वक पंडित मरण समाधि मरणके लिये सलेखना करना इत्यादि।
पांच अणुव्रतकों मूल गुण व्रत कहते है इस ७ व्रतोंकों उत्तर गुण व्रत कहते है एवं १२ व्रतोंकों श्रावक धारण कर निरातिचार व्रत पालनेसे भगवानकि आज्ञाका माराधि हो सक्ते है । वह ज० तीन, उ० पन्दरा भव करते है।
(प्र०) हे भगवान् । जीव क्या मूल गुण पञ्चखांणी है ? उत्तर गुण पञ्चखाणी है ? अपञ्चखांणी है ?
(उ०) जीव तीनों प्रकारके है पूर्ववत् । कारण नारकादि २२ दंडकके जीव अपञ्चखांगी है और तीर्यच पांचेन्द्रिय तया मनुष्य मूल गुण पञ्चखांणी उत्तर गुण पञ्चखांणी और अपञ्चखांणी तीनो प्रकारके होते है।