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(५२) (१०) दिवस चरम प्रत्या० दिनके अन्तमें किये जाते है भागर ४ पूर्ववत्
(११) उपवास तिविहार चोबिहार तथा दिशाविगासीके प्रत्याख्यानमें च्यार च्यार आगार होते है । सर्व प्रकारके प्रत्या. ख्यान करानेका पाठ पांच प्रतिक्रमणकि पुस्तकोंसे देखे।
(प्र) हे भगवानं । देश उत्तर गुण प्रत्याख्यान कितने प्रकारके है ?
(उ) देश उत्तर गुण प्रत्याः सात प्रकारके है ।
(१) दिशाव्रत-उर्ध्व अधो पूर्व पश्चम उत्तर दक्षिण इस छेवों दिशाका परिमाण जीव जीव तकके करे । अमुक दिशामें इतने जोजनसे ज्यादा न जाना।
(२) उपभोग, परिभोग, एकदफे काममें आवे या वारवार काममें आवे एसे द्रव्योंकि भावजीवके लिये मर्यादा करना तथा व्यापारादि कि भी मर्यादा करते हुवे १५ कर्मादानका परित्याग करना।
(३) अनर्था दंड-निरर्थक आरत ध्यानका त्याग प्रमादके वस वृत तेल दुग्ध दहीं पाणी आदिको भाजन खुला रखनेका त्याग, हिम्याकारी शस्त्र एकत्र करना नये तैयार कराना पुराणोंको सजवट कराने का त्याग पापकारी उपदेशका करने का त्याम। .
(४) सामायिकव्रत-प्रतिदिन सामायिक करना।