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थोकडा नार........ सूत्र श्री भगवतीजी शतक १ उद्देशा।
(मास्तित्व) (4) हे भगवान् । आस्ति पदार्थ मास्तित्व पणे परिणमें और नास्तिपदार्थ नास्तित्व पणे परिणमे। ___ (उ) हां गौतम आस्ति पदार्थ आस्तित्व पणे परिणमें और नास्ति पदार्थ नास्तिस्व पणे परिणमें ।
मावार्थ-जैनसिद्धान्त अनेकान्तबाद स्याद्वाद संयुक्त है वास्ते यहांपर सापेक्षा वचन है । जैसे अगली अंगुली पणेके भावमे भास्तित्व है और अंगुली अंगुष्टादिके भावमें नास्तित्व है वास्ते बंगुली अंगुलीके मावमें आस्तित्व परिणमते है इसो माफीक जोव जीवके ज्ञानादि गुण पणे आस्तित्व भाव परिणमते है इप्सो माफीक वस्तु वस्तुके भाव पणे आस्तित्व है । नास्ति नास्तित्वपणे परिणमें जेसे गर्दभ भृग बह नास्ति नास्ति पणे परिणमते है इसी माफीक जीवके अन्दर जडता भाव नास्ति है नास्ति भाव पणे परिणमते है इत्यादि।
प्र. हे भगवान् ! जो आस्ति मास्तित्व पणे परिणमे और नास्ति नास्तित्वपणे परिमणते है तो क्या प्रयोगसे परिणम है या स्वभावसे परिणमते है।
(3) हे गौतम : जीवके प्रयोगसे भो परिणमते है और स्वभावसे भो परिणमते है । जेसे अंगुली ऋजु है उसको जीव प्रयोगसे वक्र करते है वह जीध प्रयोगसे तथा बादला प्रमुख. यह