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स्वभावसे परिणमते है । इसी माफीक कीतनेक पदार्थ मास्ति आस्तित्वपणे जीवके प्रयोगसे परिणमते. है कितनेक पदार्थ आस्ति आस्तित्व स्वाभावे परिणमते है । एवं नास्ति नास्तित्वपणे भो जीव प्रयोग तथा स्वभावे भी परिणमते है यहां तात्पर्य वह है कि स्वगुनापेक्षा मास्ति आस्तित्व परिणमते है और पर गुनापेक्षा नास्ति नास्तित्व परिणमते है । इसी माफोक दोय अलापक गमन करनेके भी समझना।
काक्षा मोहनिय कर्मका अधिकार भाग १६ वा मे छवा हुवा है परन्तु कुच्छ संबन्ध रह गया था वह यहांपर लिखानाते है।
(म) हे भगवान । जीव कांक्षा मोहनिय कर्मकि उदीरणा स्वयं कर्ता है स्वर्य ग्रहना है कर्ता है स्वयं सबरना है।
(उ) हां गौतम । उदिरणा ग्रहना संबरना जीव स्वयं ही
(घ) अगर स्वयं जीव उदीरणा कर्ता है तो क्या उरत कौकि उदीरणा करे, अनुदीरत कोकि उदीरणा करे । उदय आने योग्य कर्मोकि उदीरणा करे। उदय समयके पश्चात अणन्तर सम. यकी उदीरणा करे। . (प्र) हे गौतम तीन पद उदीरणाके अयोग्य है किन्तु उदय माने योग्य कर्म है ॥
उसी कौंकि उदीरणा करते है।
(१०) उदीरणा करते हैं. वह क्या उत्स्थानादिसे करते है या अनुत्स्थानादिसे करते है १ उत्स्यानादिसे उदीरणा करते है। किन्तु अनुरस्थानादिसे उदीरणा नहीं होती है।