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(१२) उबट्टीता-अपवर्तनद्वारा कर्मों कि स्थितिको न्यून करना उपलक्षण से उद्धवर्तन द्वारा कर्मों कि स्थितिकी वृद्धि करना यह सूत्र तीन काळापेक्षा है (२२) मृतकालमे करी (२१) बर्त मानकालमें करे (२४) भविष्यकालमे करेगा ।
(२५) संक्रमण = मूल कर्म प्रकृतिसे भिन्न जो उत्तरकर्म प्रकृति एक दुसरी प्रकृतिके अन्दर-संक्रमण करना. इस्मे भी अध्यवसायका निमत्त कारण है जेसे कोइ जीव साता वेदनिय कर्मकों वेद रहा है असुभ अध्यवसायोंके निमत्त कारणसे वह सांता वेदनियका संक्रमण असातावेदनियमे होता है अर्थात् वह सातावेदनिय मी असातामें संक्रमण हो साता 'बिपाकको वेदता है । इस्कों भी तीन काल (२५) भूतकालमें संक्रमण किया (२६) वर्तमान में संक्रमण करे (२७) भविष्यमे संक्रमण करेंगा |
(२८) निघसद्वार अध्यवसायके निमत्त कारणसे कर्म पुद्रलोकों एकत्र करना उसमें अपवर्तन उद्धवर्तन से न्यूनाधिक करना उसे निधस केहते है जैसे सुइयोंक माराकों अग्निमें तपाके उपर चोट न पडे वहांतक निधस अर्थात न्यूनाधिक हो सके है एसा fare भी जीव तीनों कालमे करे क्यों करेगा |३०|
(३१) निकाचित् पूर्वोक्त कर्म दलक एकत्र कर धन बंधन जेसे तपाइ हुइ सुइयों पर चोट देनेसे एक रूप हो जाती है उसमे - सामान्य करण नही लग सक्ते है वह भी तीन कालापेक्षा निका चीतू कर्मा करे करेंगा ॥ ३३ ॥
(३४) नार किके नैरिये तेजस कारमाण शरीरपणे पुद्गल ग्रहन करते हैं वह क्या मूतकालके समय में वर्तमान काल्के समयमे