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(११) नारकिके नैरिये आहारकी माफीक पुद्गल एकत्र करते है वह भी आहाकि माफीक चौमांगी प्रणम्य प्रणमे प्रण. मेगा पूर्ववत् ६३ विकल्प "चय"।
(१२) एवं उपचयकि भी चौभागी और पूर्ववत् ६३ विकल्प।
(१३) एव उदौरणा (१४) एवं वेदना (११) निरा यह तीन बार कोकि अपेक्षा है । अनुदय कर्मोकि उदीरणा, उदय तथा उदीरणाकर विपाक आये कर्मोकों वेदना. वेदीये हुवे कर्मोकि निर्जरा करना इस्का भी पूर्ववत् च्यार च्यार भांग समझना।
(१६) नारकिके नैरिया कितने प्रकारके पुद्गलोंके भेदाते है?
कर्मद्रव्योंकि अपेक्षा दोय प्रकारके पुद्गल भेदाते है (१) बादर (२) सूक्ष्म भावार्थ अपवर्तन कारण (अध्यवपायके निमत्त) से कोके तीव्र रसको मंद करना तथा उद्धवर्तन करणसे कोके मंद रसको तीव्र करना अर्थात् न्यूनाधिक करना । यहांपर सामान्य सुत्र होनेसे पुद्गल भेदाना कहा है । कम पुद्गल यद्यपि बादर ही है परन्तु यहाँ. बादर और बादरकि अपेक्षा सूक्ष्म कहा है परन्तु यहां जो सूक्ष्म है वह भी अनन्ते अनन्त प्रदेशी स्कन्धका ही भेद होते है । एवं (१७) पुद्गलोंका चय (एकत्र करना) एवं (१८) उपचय (विशेष धन करना) यह दोय पद आहार द्रव्य अपेक्षा कहेना । एवं (१९) उदीरणा (२०) वेदना (२१) निजरा यह तीन पद कर्म द्रव्यापेक्षा पूर्व भेदाते कि माफीक समझना । मात्माध्यवसायके निमत्तसे अपवर्तन उद्धवर्तन करते हुवे जीव स्थितिघात तथा रसघात करे इसी माफीक स्थिति वृद्धि तथा रसवृद्धि करते है। .
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