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(६०) अभव्य जीवोंका सात शतक भव्य जीवोंकि माफीक है परन्तु मो तफावत है सो बतलाते है ।
(१) उत्पात-पांचानुत्तर वैमान छोडके (१०) दृष्टी एक मिथ्यात्वकी (११) ज्ञान-ज्ञान नहीं अज्ञान है। (१७) व्रति-व्रति नहीं, अवति है।
(२६) अनुन्ध उ० तेतीस सागरोपम (नरकापेक्षा) परन्तु शुक्ल लेश्या शतकमे उ०
(२९) स्थिति-उ० तेतीप्त सागरोपभ शुक्ल लेश्याकि अनुबन्धवत्
(३०) समृघात-पांच क्रमःसर (३१) सागरोपम-अन्तर महुर्त समझना । (९) लेश्या-कृष्णादि छेवों
(३२) चवन पांचानुत्तर वैमान छोड सर्वत्र ___ शेष सर्व द्वार असंज्ञी तीयंच पांचेन्द्रियकि माफीक समझना. सर्व जीव अभव्यपणे उत्पन्न नही हुवा है। १-३-५ एक गमा शेष आठ उदेशा एक गमा। इसी माफीक शोला महायुम्मा समझना । इति । (२) कृष्णलेशी शतकमें नाणन्ता तीन ।
(१) लेश्या एक कृष्ण लेश्या । (२) अनु० उ० तेतीस सागो० अन्तर० अधिक (१) स्थिति उ० तेतीस सागरोपम ।