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(१) एवं तेजो लेश्याका इग्यारा उदेशा संयुक्त पांचवा अन्तर शतक परन्तु अनुबन्ध उ० दोय सागरोपम पल्योपमके असंख्यातमे भाग अधिक. एवं स्थिति. किन्तु १-३-५ उदेशामें नो संज्ञा भी कहना कारण तेजोलेशी सातवे गुनस्थान भी है वहांपर संज्ञा नहीं है शेष पूर्ववत् इति ४०-५-५५।। . (६) एवं पद्मलेश्याके हग्यारा उदेशा संयुक्त छटा अन्तर शतक है परन्तु अनुबन्ध ज. एक समय उ० दश सागरोपम अन्तर महुर्त साधिक. स्थिति दश सागरोपम शेष तेनो लेश्यावत् समझना इति ४०-६-१९ ___ (७) शुक्ललेश्याके इग्यारा उदेशा संयुक्त सातवा अन्तर शतक ओघ शतककि माफक समझना परन्तु अनुबन्ध ज० एक समय उ० तेतीस सागरोपम अन्तर महुर्त साधिक स्थिति उ. तेतीस सागरोपमकि है इति ४०७-७७ इति । लेश्या संयुक्त सात शतक समुच्चयके हुवे । ___ नोट-उत्पात तथा चवनहारमें सर्वस्थानोंके जीवोंकि उत्पात तथा चवन कहा है वह अपने अपने लेश्यावोंके स्थानवाले नारकि देवता जीस जीस लेश्यामे उत्पन्न होते है और चवनमें भी जीस जीस लेश्यासे चवते है उस उस लेश्याके स्थानमें उत्पन्न होते है तात्पर्य यह हुवा कि नारकि देवतावोंमे अपनि अपनि लेश्याका ही सर्व स्थान समझना।
इसी माफीक भव्य जीवोंका भी लेश्या संयुक्त सात शतक कहाना. सर्व जीव उत्पन्नका उत्तरमें पूर्ववत् निषेद करना । इति १=१४११४।