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.. ' (१३) बन्धक,-तीनों वेदके बन्धक तथा अन्धक मी
(२४) संज्ञो असंज्ञी नहीं, संज्ञी बहुन है। (२५ इन्द्रिय, अनेन्द्रिय नही सेन्द्रिह बहुत । (२६) अनुबन्ध. ज० एकसमय उ प्रत्यक सौसागरोपम साधिक (१७) संमहो-जेसे गमाजीके थोकडे लिखा है। (२८) आहार नियमा छे दिशका २८८ बोलका (२९) स्थिति ज० एक समय उ० तेतीप्त सागरो. (३०) समुद्रात केवली वर्षके छे वाले घणा।। (३१) माण दोनों प्रकार से मरे | स० अ० (३२) चवन-चक्के सर्व स्थानमें भावे ।
(प्र) हे करूणा सिन्धु । सर्व प्राणभूतजी वसत्व कडयुम्मा कडयुम्मा संज्ञी पांचेन्द्रियपणे उत्पन्न हुवा है।
(३) हे गौतम सर्व प्राणभूत जीव सत्व कड० कह० संज्ञो पांचेन्द्रियपणे पूर्व एकवार नहीं किन्तु अनन्ती अनन्ती वार उत्पन्न हुवा है । कारण जीव अनादि कालसे संसारमें परिभ्रमण कर रहा है।
इसी माफीक शेष १५ महायुम्मा मी समझ लेना परन्तु परिमाण अपना अपना कहाना । इति १० शतक प्रथम उदेशा ।
(२) प्रथम समयके संज्ञो पांचेन्द्रिय कडयुम्मा कहासे उत्पन्न होते है इस्यादि ३२ द्वार । . (१) उत्पात-सर्वस्थानसे (२) परिमाण पूर्ववत् (३) अपहा. रण पूर्ववत (४) अवगाहाना न० उ० अंगुलके असंख्यातमें माम