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(५) बन्घ आयुष्य कर्मका अवन्ध शेष पूर्ववत् (६) गेंदे भाका वेदका है (७) उदय आठ कर्मोका (८) उदिरणा आयुष्य कर्मका अनुदिरक वेदनिय कर्मकि भजना शेष छे कमौका उदिरक अनुदिरक । (९) लेश्या छेवों (१०) दृष्टो दोष सम्य० मिथ्या० (११) ज्ञानाज्ञान दोनों (१२) योग- कायाको (१३) उपयोग दोनों (१४) वर्णादि, एके न्द्रपश्त । (१५) उश्वासग, नो उश्व० नो निश्वा० (१६) आहारीक (१७) अत्री है (१८) किया सक्रिय है (१९) बन्- सात बन्गा (२०) संज्ञ =च्यारों (२१) कषाय्=च्यारों (२२) वेद= तीनों ( २३ ) बन्धक = अबन्धक (२४) (ज्ञो है। (२५) इन्द्रिय-पें' द्रव है (२६) अनुबंध ज० उ० एक समय (२७) संभ हो गमावत (२८) आहार नियम छे दिशाका (२९) स्थिति म० उ० एक समय (३०) समुद्रयात = दोय वदेनिय० कषाय (११) मरण नहीं (३२) चवन नहीं । एवं १६ महायुम्मा परन्तु परिमाण अपना अपना कहना. सर्व प्राणभूत नीव सत्त्र प्रथम ममयके 。 कड० संज्ञापांचेंद्रियपणे अन्न्ती वार उत्पन्न हुवा है भावना पूर्ववत इति ४० - २ समाप्तम् ।
(३) प्रथम समयका उदेशा ( ४ ) चरम समयका उदेशा (५) अचरम समयका उद्देशा (६) प्रथम प्रथम समयका उदेशा (७) प्रथम अप्रथम समयका उ० (८) प्रथम चरम समयका उ० (९) प्रथम कावश्म समयका उ० (१०) चरम चश्म समयका ० ( ११ ) चरम अचरम समयका उदेशा. इस इग्दारा उदेशावों में पहला, ती और पांचमा यह तीन उदेशा साहश है। शेष आठ उदेशा साहश है । इति चालीसा शतक के इग्यारा उदेशोंसे प्रथम अन्तर शतक समाप्त हुआ ।