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थोकड़ा नम्बर १ श्री भगवतीजी.सूत्र शतक ३३वां
(एकेन्दिा शतक) (प्र) हे भगवान् ! एकेन्द्रिय कितने प्रकारके है। .
(उ) हे गौतम ! एकेन्द्रिय वीस प्रकारके है यथा पृथ्वीकाय सुक्ष्म, बादर, एकेकके पर्याप्ता, अपर्याप्त, एवं अपकायके च्यार तेउकायके च्यार, वायुकायके च्यार, बनास्पतिकायके च्यार सर्व २० भेद होते है।
(५) वीस भेदसे प्रत्येक भेदके कर्म प्रकृति ( सतारूप) कितनी है। ___(उ) प्रत्येक भेदवाले जीवोंके कर्म प्रकृति मठ आठ है यथा ज्ञानांवर्णिय, दर्शनावणिय, वेदनिय, मोहनिय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तराय कर्म।
(प्रप्रत्येक भेदवाले जीवोंके कितने कर्मोका बन्ध है। . (3) सात कर्म ( आयुष्य वर्षके ) तथा आठ कर्म बांधे। (प्र) कितनी कर्म प्रकृतिकों वेदे।
(3) आठ कर्म तथा श्रोतेन्द्रिय, चक्षुइन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसेन्द्रिय, पुरुष वेद, स्त्री वेद, इस १४ प्रकृतिको वेदते है । च्यार इन्द्रिय और दोय वेद एकेन्द्रियके न होनेसे इस बातका दुःख वेदते है यह बात अध्यावसायापेक्षा है केवली केवल ज्ञानसे देखा है। इति ३३वां शतकका प्रथम उद्देशा समाप्त ।
(५) अनान्तर उत्पन्न हुवे एकेन्द्रिय कितने प्रकार के है।