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(३२)
यह ओघ उदेशा हुवा इसी माफीक कृष्ण लेश्याका उदेशा एवं निक लेखाका उदेशा, एवं कापोत लेश्याका उदेशा यह कार उद्देशाको शास्त्रकारोंने ओघ उदेशा कहा है ।
एवं व्यार उदेशा मत्र सिद्धि जीवोंका ।
अमत्र सिद्धि जीवोंका
सम्यग्द्रष्टी जीवोंका, परन्तु कृष्ण लेश्या उदेशे सातवीं नरकसे सम्यग्द्रष्टी जीव नहीं निकलते हैं ।
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एवं चबार उदेशा मिथ्याद्रष्टी जीवका
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कृष्ण पक्षी जीवोंका
शुक्ल पक्षी जीवोंका
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एवं सर्व मीलके २८ उदेशा
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जेशे ३१ वां शतक में उत्पन्न होनेको २८ उद्देशा कहा था इसी माफीक इस १२ वां शतकमै १८ उद्देशा नरक से निकलने का कहा है।
सर्वज्ञ भगवानने अपने केवल ज्ञानसे नारर्किको कृतयुम्मा आदिसे उत्पन्न होते हुवे कों देखा है एसी परूपना करी है एक कम्मा आदि युम्मापणे अपना जीव अनन्तीवार उत्पन्न हुवा है इस समय सम्यक ज्ञान आराधन करलेने से फोरसे उस स्थान में इस युम्मा द्वार उत्पन्न ही न होना पडे एसी प्रज्ञा इस थोकडाके अन्दर सदैव रखनी चाहिये इति ।
सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।