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(१३) गतिदार यंत्रसे संथनके नाम | गति स्थिति
| न. | उ० | ज. । उ. सामा० छदोप०को धर्म कल्प अनुत्तर वै०२ पल्यो. २३ सागरो. परिहार० सौधर्म सहस्त्र २ पल्यो० १८ सागरो० सुक्षम अनुत्तर वै० अनुत्तर वै०३१ साग०३३ सा० । यथाख्या० मनु० अनु० ३१ मा०३३ मा०
देवतावोंमें इन्द्र, सामानिक, तावत्रीसका, लोकपाल, और अहर्मेन्द्र यह पांच पद्वि है । सामा० छदो आराधि होतों पांचोसे एक पद्विवाला देव हो परिहार विशुद्ध प्रथमकि च्यार पद्विसे एक पद्वि घर हो । सुक्ष० यथा० अहंभेन्द्रि पद्विधर हों । जघन्य विराधि होतो च्यार प्रकारके देवोंसे देव होवें । उत्कृष्ट दिराधि होतो संसारमंडछ । इतिद्वारम् ।
(११) संयमके स्थान-सामा० छेदो० परि० इनतीनों संयमके स्थान असंख्याते असंख्याते है । सुक्षम० अन्तर महुर्तके समय परिमाण असंख्याते स्थान है । यथाख्यानके संयमका स्थान एक ही है। जिस्की अल्पाबहुत्व ।
(१) स्तोक यथाख्यात सं०के संयम स्थान । (२) सूक्ष्म के संयमस्थान असंख्यातागुने । (३) परिहारके , , (४) सामा० छेदो० सं०स्य० तूल्य :"