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- (१५) निकाशे-संयमके पर्या एकेक संयमके पर्यव अनंते अनन्ते है । सामा० छेदो० परिहारः परस्पर तथा आपसमें षट्गुन हानिवृद्धि है तथा आपसमे तुल्य भी है। सुक्ष्म० यथाख्यातसे नीनों संयम अनन्तगुने न्यून है । सुक्ष्म० तीनोंसे मनन्तगुन अधिक है आपसमें षट्गुन हानि वृद्धि, यथाख्यातसे अनन्त गुन न्यून है । यथा० च्यारोंसे अनन्तगुन अधिक है । अपसमें तुल्य है। अल्पा बहुत्व ।
(१) स्तोक सामा० छेदो० जघन्य संयम पर्यव अपसमे तूल्य (२) परिहार० ज० सं० पर्यव अनंतगुना (३) , उत्कृष्ट० " (४) सा० छ० (५) सूक्ष० न० ,
(७) यथा न०३० आपसमे तूल्य ,, घारम्
(१६) योग-प्रथमके च्यार संयम संयोगि होते है, यया ज्यात० संयोगि अयोगि मी होते है।
(१७) उपयोग-सुक्ष्म० साकारोपयोगवाले, शेष च्यार संयम साकार अनाकार दोनों उपयोगवाले होते है।
(१८) कषाय-प्रथमके तीनसंयम संचलनके चोकमें होता है।