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(उ) अनन्ते एवं भविष्यकालमें मी एवं सर्व कलमें मी मन न्ते पुद्गल प्रवर्तन होते है। कारण काल मनन्ता है।
भूतकालसे भविष्यकाल एक समय अधिक है । कारण । वर्तमानकालका समय है वह मविष्य कालमें गीना जाता है। भूतकालकि आदि नहीं है और भविष्यकालका अंत नहीं है वर्तमान समय एक है उसको शास्त्रकारोंने भविष्यकालमें ही गीना है इति। - सेवं भंते सेवं भंते तमेवसचम् ।।
. . थोकड़ा नम्बर ६. सूत्र श्री भगवतीजी शतक २५ उद्देशा ७ .
- (संयति) निग्रंथ पांच प्रकार के होते है वह थोकडा, शीघ्रबोध माग चोथामें छपा गया है, अब संयति (साधु ) पांच प्रकारके होते है यथा सामायिक संयति, छदोपस्थापनियसंथति, परिहार विशुद्ध संयति, सुक्षम संपराय संयति, यथाक्षात संपति इस पांचो संयतिको ३६ द्वारसे विवरणकर शास्त्रकार बताते है। ..
(१) प्रज्ञापनद्वारांच संयतिकि परूपणा करते है (१) सामा यिक संयतिके दो भेद है (१) स्वल्प कालका मो प्रथम और चरम जिनोंके साधुवोंकों होता है उसकी मर्याद जघन्य सातदिन मध्यम च्यार माप्त उत्कृष्ठ छे मास (२) बावीस तीर्यकरों के तथा महाविदेह क्षेत्रमें मुनियोंके सामायिक संयम होते है वह जावजीब तक रहेते हैं (२) छदोपस्थापनिय संयम, जिस्का दो भेद है (१) स अतिचार को पूर्व संयमके अन्दर आठवां प्रायश्चित सेवन कर