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(६९) ध्य तथा सनत्कुमार देवलोककी कहना ! यथा(१) गमें प्रत्यक वर्ष, दोयसागरो० उ० च्यार कोडपूर्व २८ सागरो. (२) गमें ,
उ० ४ प्रत्यवर्ष आठ सा.
उ. ४ कोडपूर्व २८ सा. (४) गमें , , उ० ४ पु० २८ सा. (५) गमें , , उ० ४ प्रत्य. ८ सा० (१) गमें , , उ. ४ कोड• २८ सा० (७) गमें कोडपूर्व सातसागरो० उ० ४ प्र० १८ सा. (८) गमें , , उ० ४ प्र० सा० (९) गमें , , उ० ४ कोड० २८ सा० ' एवं महेद्रदेवलोक, ब्रह्मदेवलोक, लांतकदेवलोक, महाशुक्रदेवलोक, सहस्रारदेवलोक परन्तु गमामें स्पिति अपने अपने देवलोककि मधन्य उत्कृष्टसे गमा बोलना। विशेष है कि लांतकदेवलोकमें संज्ञी तीर्यच पांचेद्रिय अपनि ज० स्थितिकालमें लेश्या छवों कहना मनुष्य तथा तीर्थच संहनन पांचवे छटे देवलोकमें पांचसंहननबाला भावे छेवटा धर्मके । सातवा आठवा देवलोकमें च्यार संहननवाला भावे कीलीका संहनन वनके ।
अणत् नौवा देवलोक, संख्याते वर्षवाला संज्ञी मनुष्य मरके नौवा देवलोकमें न० अठारा सागरोपम उ० उगणीस सागरोपमकि स्पितिमें उत्पन्न होते है ऋद्धि पूर्ववत् परन्तु संहनन तीन प्रथमके. • मर ज० तीन मब उ० सात मन करे काल ज० अठारा सागरोपम दोय प्रत्यक वर्ष उ० सतावन सागरोपम च्यार कोडपून