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(२१) मनुष्यका उदेशा - मनुष्यके दंडक में संज्ञी, असंज्ञो संख्याते वर्षवाले, असंख्याते वर्षवाले यह सब मनुष्यके दंडक में हि गिने जाते है। छे नरक दश भुवनपति व्यन्तर, ज्योतीषी, वारह देवलोक, नौग्रीचैग० पांच अनुत्तरवैमान, तीन स्थावर, तीन वैकले - न्द्रिय, तीर्थचपांचेद्रिय और मनुष्य, इतने स्थानके जीव मरके, मनुष्य में ज० अन्तरमहूर्त उ० तीन पल्योपम कि स्थितिमें उत्पन्न होते है । " यथासंभव " जिस्मे ।
रत्नप्रभा नरकसे मरके जीव मनुष्यमें ज० प्रत्यकमास उ० कोंड पूर्व कि स्थिति में उत्पन्न होते है। ऋद्धिके २० द्वार जेसे रत्नप्रमासे तीर्थच पांचेन्द्रियमे उत्पन्न समय कही थी इसी माफीक समझना परन्तु यहा परिमाणमे १-२-३ ॐ० संख्याते उत्पन्न.. होते है क्युकि असंज्ञी मनुष्यमें तो नारकी उत्पन्न होवे नही और संज्ञी मनुष्य में संख्याते से ज्यादे स्थान हे नही और गमामें मनुष्यका जघन्यकाल प्रत्येक मासका केहना कारण प्रत्येक मासले कप स्थिति में उत्पन्न नही होते है । वास्ते गमा प्रत्यक मास से केहना | इसी माफीक शार्कर प्रमा- यावत् तमप्रम मी समझना, परन्तु यहांसे आया हुवा जीव मनुष्य जघन्य स्मिति प्रत्यक वर्षसे कम नही पावेगा वास्ते गमामे मनुष्यकि ज० स्थिति प्रत्यक वर्ष कि कहना शेष ऋद्धि अवग्गहाना लेश्या आयुष्य अनुबन्धादि स्व स्वस्था नसे उपयोग से कहना “सातवी नरकका अमाव"
पृथ्वीकाय मरके, मनुष्य में ज० अन्तर महुर्त उ० कोडपूर्व कि स्थितिमें उत्पन्न होते है । भिस्के ऋद्धिके २० द्वारा और