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नौ गमा पूर्व पृथ्वीकाय तीर्थव पांचेन्द्रिगमें उत्पन्न समय कहा था इसी माफीक कहना परन्तु तीसरे उटे नौ में गमामें परिमाण १.२. ३ उ० संख्याते समझना और प्रथम गमे पृथ्वी काय अपने जघन्य कालमें अध्यवसाय प्रपन्य अप्रपा दोनों होते है दुसरेगमे अप्रमस्थ श्रीसरे गमें प्रसस्य शेष तीर्थच चन्द्रिय माफोक है एवं अपकाय वनापतिकाय वेन्द्रिय. तेन्द्रि", रिन्द्रिय, असंज्ञी नीर्यच पांचेन्द्रिय संज्ञी तीर्थच पांचेन्द्रिय असंज्ञो मनुष्य संज्ञो मनुष्य यह सब जैसे तीच पांचेन्द्रि के दंडकमें उत्पन्न समय ऋद्धि तथा गमा कहा था इसी माफीक माना परन्तु परिमाण स्थिति अनुबन्धादि अपने अपने स्थानसे कहना । ___ असुर कुमारके देव चवके मनुष्यमें ज० प्रत्यक मास उ. कोडपूर्वकि स्थिति उत्पन्न होते है ऋद्धि के २० द्वार जेसे तीर्थच पांचन्द्रियमें उत्पन्न समय कहा था इसी माफक कहना पान्तु परिमाणमें १-२-३ उ० संख्याते कहना । और गमामें तीर्थचका नहा नक्रय अन्तर महत का, काल, कहा था वह यहां ( मनुष्य में ) प्रत्यक मासका कलसे .मा कहता । एवं दश मुक. नपनि व्यन्तर ज्योतीषी सौधर्म इशांन देवलोक तक और तीजे देवलोकसे नौ प्राग तक के देव मनुष्यमें ज० प्रत्यक वर्ष और उ० कोडपूर्व में उत्पन्न होते है ऋद्धिके २० द्वार स्वउपयोगसे कहना कारण रघु दंडक कण्ठस्य करनेवालोकों बहुत ही सुगम् है वास्ते यहा नहीं लिखा है नागन्ते और गमा तथा मक्के लिये प्रथम थोकड़ेमें विस्तार से लिव आये है । इतना ध्यान रखना कि नौग्री वैगमें अवगाहाना तथा संस्थान एक मव पाणी है समुदघात सद्भा