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व्यंतर, ज्योतीषी, सौधर्म देवलोकसे यावत आठवां सहस्र देवलोकके देवता, पांच स्थावर, तीन वैकलेन्द्रिय, तीर्यच पांचेन्द्रियस्थानके जीव मरके तीर्यच पांचेद्रियमें न० अन्तरमहुर्त और मनुष्य इतने उ. कोडपूर्वकि स्थितिमें उत्पन्न होते है । जिस्में प्रथम रत्नप्रभा नरकेके नैरिया मरके तीर्यच पांचेद्रियमें ज० अन्तरमहुर्त उ० कोडपूर्वकि स्थितिमें उत्पन्न होते है. जिस्की ऋद्धि इस माफीक है।
(१) उत्पात-रत्नप्रभा नरकसे । (२) परिमाण-एक समयमे १-३-३ उ० संख्य असंख्य। (३) संहनन-छे संहननसे असंहनन मनिष्ट पुद्गल । ,
(१) भवागहाना-भवधारणी ज० गु० असं० माग उ० ७॥ धनुष्य ६ मगुल: उत्तर वैक्रय न. संगु. संख्य. भाग० उ० १५॥ धनु० १२ अंगुल यह सर्व भवापेक्षा है।
(५) संस्थान भवधारणी तथा उत्तरवैक्रय एकहुन्डक संस्थान । (६) लेश्या एक कापोत (७) दृष्टी तीनों । (८) ज्ञान, तीन ज्ञानकि नियमा तीन अज्ञानकि भजना। (९) योग तीनों (१०) उपयोग दोनों (११) संज्ञाच्यारों। (१२) कषाय च्यारों (१३) इन्द्रि पांचोवाला। (१४) समुद्घात च्यार कमःसर ।
(१९) वेदना साता असाता (१६) वेद एक नपुंसक । ... (१७) स्थिति ज० १०००० वर्ष उ० एक सागरोपम ।
(१८) अनुबन्ध स्थिति माफीक । (१९) मध्यवसाय असंख्याते प्रसस्थ अप्रसस्थ ।