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(१७) बेन्द्रिमी वीर्यच, स
उत्पन्न होते है
कि है परन्तु १-२-४-५ इस च्यार गमावोंमें नस्पतिके मील 'प्रत्य समय अनन्ते जीव उत्पन्न होते है । इस च्यार गोंकि अपेक्षा ज• दोयभव उ० अनन्तेभव. कालापेक्षा न. दोक अन्तरमहुर्त उ० अनन्तोकाल शेष पांचगमा पृथ्वी कायवत सम'झना । इति २४-१६
(१७) बेन्द्रियका सतरवा उदेश-पांच स्थावर तीन वैकलेन्द्रिय संज्ञीतीर्यच, असंज्ञी वीर्यच, संज्ञी मनुष्य, असंज्ञी गनुष्य, एवं १२ स्थानके जीव मरके बेन्द्रियमें उत्पन्न होते है यहां (बेद्रियमें) स्थिति ज० अन्तर महुर्त उ० बारह वर्षकि पाते है आनेबालेके ऋद्धिके २० पूर्ववत् कहना पृथ्वी आदि १.२-४.५ इस च्यार गमामें ज० दोयभव० उ० संख्याते भव करते हैं काल० ज० दोय अन्तरमहुर्त उ० संख्यातोंकाल लागे शेष पांच गमामें ज• दोयभव उ० आट भव करते है जिस्के गमाका काल वेन्द्रिय तथा इस्मे आनेवाले जीवोंके जघन्य उत्कृष्ट स्थितिसे पूर्ववत् लगा लेना । परन्तु तीर्थच पांचेन्द्रिय तथा मनुष्य नौ गमामें ज० दोयभव उत्कृष्ट आठ भव करते है । शेष पृथ्वीवत् इति २४-१७
(१८) एवं तेन्द्रियका उदेशा० परन्तु स्थिति उ० ४९ अहोरात्रिसे गमा केहना शेष बेद्रियबत् इति २४-१८
(१९) एवं चोरिंद्रियका उदेशा० परन्तु स्थिति उ० छे माससे गमा केहना शेष बेन्द्रियवत् इति २४-१९
(२०) तीर्यच पांचेंद्रियका उदेशा-सातनरक, देशमुवनपति,