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(६) प्रसन्न होते है वह प्रत्यक स्थानके जीव कितने कितने स्थानसे माते है यथा
३ रत्नप्रभा नरकम संज्ञी- मनुष्य, संज्ञी तीर्यच, असंज्ञी वीर्यच यह तीन स्थानसे आते है।
१२ शेष छे नरकमें संज्ञी मनुष्य, संज्ञी तीर्यच यह दोय स्थानसे आके उत्पन्न होते हैं।
- १९ दश भुवनपति एक व्यान्तर एवं ११ स्थानमें संज्ञी मनुष्य, संज्ञी तीर्यच, असंज्ञो तीर्यच. मनुष्य युगलीया, तीर्यच युगलीया एवं पांच पांच स्थानसे आके उत्पन्न होते है। . _ ७८ पृथ्वी पाणी वनास्पति एवं तीन स्थानमें चौवीस दंडक और असंज्ञी मनुष्य असंज्ञो वीर्यच एवं छवीस स्थानोसे भाते है। यद्यपि चौवीस दंडकके बाहार संसारी जीव नही है परन्तु प्रथम सप्रयोजन मनुष्य तीर्यचके दंडकमें संज्ञी जीवोंकों गृहन कर यह असंज्ञीकों अलग गीना है।
१० तेउ वायु तीन वैकलेन्द्रि एवं पांच स्थानमें पांच स्थावर तीन वैकलेन्द्रिय संज्ञी मनुष्य, तीर्यच, असंज्ञी मनुष्य, तीर्यच, एवं बारह बारह स्थानोंसे आके उत्पन्न होता हैं ५-१२-६० __ ३९ तीर्यच पांचेन्द्रियमें. सातनरक. दशभुवनपति, व्यन्तर जोतिषी. माठदेवलोक. पांचस्थावर, तीनवैकलेन्द्रिय. संज्ञीमनुष्य. तीयच असंज्ञी मनुष्य. तीर्यच एवं ३९ स्थानसे मा-के उत्पन्न होता है। __ १३ मनुष्यमें छे नारकी, दश भुवनपति, एक व्यन्तर, जोतीषी, बारहादेवलोक, एकनौग्रीवैग, एकच्यारानुत्तरवैमान, एक