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वार्थ सिद्ध वैमान, पृथ्वी पाणी वनास्पति तीन वैलेन्द्रिय संज्ञी मुष्प, वीर्यच, असंज्ञी मनुष्य, तीर्यच एवं १३ स्थानोंसे आके प्रसन्न होता है। ' . १२ जोतीषी. सौधर्म. इशान एवं तीन स्थानों में. संजी मनुष्य. तीर्यच. मनुष्य युगलीया, तीर्थंच युगलीया. एवं चार चार स्थानसे आते है। .. १२ तीजा देवलोकसे माठ वा देवलोक तकके छ स्थानमें संज्ञो मनुष्य संज्ञो तीर्थच एवं दो दो स्थानसे आते है ।
७ च्यार देवलोक (९-१०-११-१२ वां) एक नौग्रीवै. गका, एक च्यारानुत्तर वमानका, एकसर्वार्थसिद्ध वैमानका एवं ७ स्थानमें एक संज्ञी मनुष्यका ही मायके उत्पन्न होता है।
एवं सर्व मीलाके ३११ स्थान हुवे इति ।
(६) भवद्यार-कोनसा जीव कितने स्थान में जाते है वह यहाँसे कितनि स्थिति वाला जाते है वहांपर कितनि स्थिति पाते है तथा जाने अपेक्षा और माने अपेक्षा कितने कितने भव करते है।
(१) असंज्ञी तीर्थच पांचेंद्रिय मरके वैक्रय शरीर धारक बारह स्थान, पेहली नरक, दश मुवनपति,व्यंतरमें जाते है। यहांसे जघन्य अन्तर मुहर्त, उत्कृष्ट कोड पूर्व वाला जाता है वहांपर जघन्य १००००). वर्ष उ० पल्योपमके असंख्यातमें भाग कि स्थितिमें जाते है, भव जघन्य तथा उत्कृष्ट दोय भव करते है, यहांसे असंज्ञी मरके जाता है वह एक भव, वहांपर भी एक भव करते है । उक्त १२ स्थानवाला पीच्छा असंज्ञी तीर्यच पांचेंद्रियमे.