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उपर लिखे ९३ बोलोंसे कोई साधु साध्वी एक बोल भी से. वन करे, करावे करतेको अच्छा समझेगा, उसको लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त होगा. प्रायश्चित्त विधि देखो वीसवा उद्देशामें.
इति श्री निशिथसूत्र-अठारवा उद्देशाका संक्षिप्त सार.
(१६) श्री निशिथसूत्र उन्नीसवा उद्देशा.
(१) 'जो कोइ साधु साध्वी' बहुमूल्य वस्तु-वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण तथा औषधि आदि, कोइ गृहस्थ बहुमूल्यवाला वस्तुका मूल्य स्वयं लावे, अन्यके पास मूल्य मंगवाके तथा अन्य साधुके निमित्त मूल्य लाते हुवेको अच्छा समझे. वह वस्तु बहु मूल्यवाली मुनि ग्रहन करे, करावे, करतेको अच्छा समझे.
भावार्थ-बहु मूल्यवाली वस्तु ग्रहन करनेसे ममत्वभाव बढे, चौरादिका भय रहे, इत्यादि.
(२) एवं बहुमूल्यवाली वस्तु उधारी लाके देवे, उसे मुनि ग्रहन करे.३
(३) सलटा पलटाके देवे, उसे मुनि ग्रहन करे. ३ (४) निर्बलसे जबरदस्ती सबल दिलावे, उसे ग्रहन करे.३
(५) दो भागीदारोंकी वस्तु, एकका दिल देनेका न होनेपर भी दुसरा देवे, उसे मुनि ग्रहन करे.
(६) बहु मूल्य वस्तु सामने लाके देवे, उसे ग्रहन करे.३ भावना पूर्ववत्. • (७) ,, अगर कोइ बेमार साधुके लीये बहु मूल्य औष