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(१५) श्री निशिथसूत्र-पंदरहवा उद्देशा...
(१) 'जो कोइ साधु साध्वी ' अन्य साधु साध्वी प्रत्ये निष्ठुर वचन बोले.
(२) एवं स्नेह रहित कर्कश वचन बोले.
(३) कठोर, कर्कश पचन बोले, बोलावे, बोलतेको अच्छा समझे.
(४) एवं आशातना करे. ३
भावार्थ-ऐसा बोलनेसे धर्म स्नेहका नाश और क्लेशको वृद्धि होती है. मुनियोंका वचन प्रियकारी, मधुर होना चाहिये.
(५) , सचित्त आम्रफल भक्षण करे, ३ (६) एवं सचित्त आम्रफलको चूसे. ३.
(७) एवं आम्रफलकी गुटली, आम्रफलके टुकडे (कातळी आम्रफलकी एक शाखा, (डाली) छतु आदिको चूसे. ३
(८) आम्रफलकी पेसी मध्यभागको चूसे. ३
(९) सचित्त आम्र प्रतिबद्ध अर्थात् आम्रफलकी फांकों काटी हुइ, परन्तु अबीतक सचित्त प्रतिबद्ध है, उसको खावे. ३
(१०) एवं उक्त जीव सहितको चूसे. ३
(११) सचित्त जीव प्रतिबद्ध आम्रफल डाला, शाखादि भक्षण करे. ३
(१२) एवं उसे चूसे. ३
भावार्थ-जीव सहित आम्रफलादि भक्षण करनेसे जीव विराधना होती है, हृदय निर्दय हो जाता है. अपने ग्रहन किया हुवा नियमका भंग होते है.
(१३) ,, अपने पाव, अन्यतीर्थी, अन्यतीर्थी गृहस्थोंसे