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मसलावे, दबावे, चंपावे. ३ एवं यावत् तीसरा उद्देशामें ५६ सूत्र स्वअपेक्षाका कहा है, इसी माफिक यहां साधु, अन्य तीर्थी, अन्यतीर्थी गृहस्थोंसे करावे, करानेका आदेश देवे, कराते हुधेको अच्छा समझे. यावत् ग्रामानुग्राम विहार करते समय अपने शिरपर छत्र धारण करवावे. ३ ___ भावार्थ-अन्यतीर्थी लोगोंसे कुछ भी काम नहीं कराना चाहिये. वह कार्य पश्चात् शीतल पाणी विगेरेका आरंभ करे, करावे इत्यादि. ६८
(६९) ,, आराम, मुसाफिरखाना, उद्यान, स्त्रीपुरुषको आराम करनेका स्थान, गृहस्थोंका गृह तथा तापसके आश्रमकी अन्दर लघुनीत (पैसाब ) वडीनीत (टटी ) परिठे.
(७०) ,, एवं उद्यानके बंगला (गृह) उद्यानकी शाला, निजान, गृहशाला इस स्थानोमें टटी, पैसाब परठे. ३
(७१ ) कोट, कोटके फिरणी रहस्ता, दरवाजा, बुरजोपर टटी पैसाब परठे. ३ .
७२ ) नदी, तलाव, कुवाका पाणी आनेका मार्ग, पाणी नीकलनेका पन्थ, पाणीका तीर, पाणीका स्थान (आगार ) पर टटी, पैसाब परठे, परठावे. ३
(७३) शुन्य गृह, शुन्य शाला, भग्नगृह, भगशाला, कुडगर, भूमिमें गृह, भूमिकी शाला, कोठारका गृह शाला. इस स्थानोमें टटी, पैसाब परठे. ३
(७४) तृण गृह, तृण शाला, तुस गृह-शाला, मूसाका गृह-शाला, इस स्थानोमें टटी, पैसाब करे ३, परठे. ३
(७५, रथ रखनेका गृह-शाला, युगपात-सेविका, मैना रखनेका गृह-शालामें टटी, पैसाब परठे. ३