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ર૭૧ अश्रावक मुनिके लीये ग्राममें तथा ग्रामांतरमें मुनिके नामसे पात्राकी याचना करे, वह पात्र मुनि ग्रहन करे, ३
(४८) एवं परिषदकी अन्दर उठके कहे कि हे भद्रश्रो. तावों! मुनिको पात्राकी जरुरत है, किसीके हो तो देना. इत्यादि याचना कीया हुवा पात्र ग्रहन करे. ३
(४९), मुनि पात्र याचना करनेपर गृहस्थ कहे-हे मुनि! आप ऋतुबद्ध ( मास कल्प) यहांपर ठेरे. हम आपकों पात्रा देवेंगे ऐसा कहने पर वहांपर मुनि मासकल्प रहे. ३
(५०) एवं चातुर्मासका कहनेपर, मुनि पात्रोंके निमित्त चातुर्मास करे. ३
भावार्थ-गृहस्थलोग मूल्य मंगावे, तथा काष्ठादि कटवाके नया पात्र बनावे. इत्यादि.
इस उद्देशाने पात्रोंका विषय है. मुनिको संयमयात्रा निर्वाह करनेके लीये दृढ ( मजबूत ) संहननवाले मुनियाको एक पात्र रखनेका हुकम है. मध्यम संहननवाले तीन पात्र रखके मोक्षमार्गका साधन कर शके. परन्तु उसके रंगने में सुवर्ण, सुगन्धि करनेमें अपना अमूल्य समय खरच करना न चाहिये. लाभालाभका कारण तथा स्निग्ध रहनेके भयसे रंगना पडता हो, वह भी यतनासे करसक्त है.
इपर लिखे ५० बोलोंसे एक भी बोल सेवन करनेवाले मु. नियोंको लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त होता है. प्रायश्चित्त विधि देखो वीमवां उद्देशामें. ___ इति श्री निशिथसूत्र-चौदवां उद्देशाका संक्षिप्त सार.
१ औपग्रहिक, कमंडल ( तीरपणी ) पडिगादि भी रखसक्ते है.