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(७) ,, एक तर्फ आदि भीतपर दोनों तर्फ आदि आदि भीतपर पाट-पाटला रखके बैठे, मोटी इंटोंकी राशिपर तथा और भी जिस जगा चलाचल ( अस्थिर ) हो, उस स्थानपर बैठ यावत् स्वाध्याय करे. ३
भावार्थ-जीवोंकी विराधना होवे, आप स्वयं गिर पडे, आत्मघात, संयमघात होवे, उपकरणादि पडनेसे तूटे फूटेइत्यादि दोष लगता है.
(८),, अन्यतीर्थी तथा गृहस्थ लागोंको संसारिक शिल्पकला, चित्रकला, वनकला, गणितकलादि (१२) श्लाघाकरणरुप जोडकला, श्लोकबंधकी कला, चोपड, शेत्रंज, कांकरी रमनेकी कला, ज्योतिषकला, वैद्यककला, सलाह देना, गृहस्थके कार्यमें पटु बनाना, क्लेश, युद्ध संग्रामादिकी कला बतलाना, शिखवाना, स्वयं करे, अन्यसे करावे, करतेको अच्छा समझे.
भावार्थ-मुनि आप संसारमें अनेक कलावोंका अभ्यास कीया हुवा है, फिर दीक्षा लेने पर गृहस्थोंपर स्नेह करते हुवे, उक्त कलावों गृहस्थोंको शीखावे, अर्थात् उस कलावोंसे गृहस्थलोग सावध वेपार कर अनेक क्लेशके हेतु उत्पन्न करेंगे. वास्ते मुनिको तो गृहस्थोंको एक धर्मकला, कि जिससे इसलोक परलोकमें सुखपूर्वक आत्मकल्याण करे, ऐसा ही बतलानी चाहिये.
(९) ,, अन्यतीर्थीयोंको तथा गृहस्थोंको कठिन शब्द बोले. ३
(१०) एवं स्नेह रहित कर्कश वचन बोले. ३ ' (११) कठोर और कर्कश वचन बोले. ३
(१२), आशातना करे.