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उपर लेखे ४८ बालोंसे एक भी बोल सेवन करनेवाले साधु, साध्वीयोंको लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त होता है. प्रायश्चित्त विधि देखो वीसवां उद्देशामें.
इति श्री निशिथसूत्रके बारहवां उद्देशाका संक्षिप्त सार.
(१३) श्री निशिथसूत्र-तेरहवा उद्देशा. (१) 'जो कोइ साधु साध्वी ' अन्तरा रहित सचित्त पृथ्वीकायपर बैठ-सुवे खडा रहै, स्वाध्याय ध्यान करे. ३.
(२) सचित्त पृथ्वीकी रज उडी हुइ पर बैठ, यावत् स्वाध्याय करे.३
( ३ ) एवं सचित्त पाणीसे स्निग्ध पृथ्वीपर बैठ, यावत् स्वाध्याय करे. ३
(४) एवं सचित्त-तत्काल खानसे निकली हुइ शिला, तथा शिलाको तोडे हुवे छोटे छोटे पत्थरपर बैठे, तथा कीचडसे, कचरासे जीवादिकी उत्पत्ति हुइ हो, काष्ठके पाट-पाटलादिमें जीवोत्पत्ति हुइ हो, इंडा, प्राणी (बेइंद्रियादि) बीज, हरिकाय, ओसका पाणी, मकडीजाला, निलण-फूलण, पाणी, कच्ची मट्टी, मांकड, जीवोंका झाला संयुक हो, उसपर बैठे, उठे, सुवे, यावत् स्वाध्याय करे, करावे, करतेको अच्छा समझे.
(५),, घरकी देहलीपर, घरके उंबरे (दरवाजाका मध्य भाग ) उखलपर, स्नान करनेके पाटेपर, बैठे, सुवे, शय्या करे, यावत् वहां बैठके स्वाध्याय-ध्यान करे. ३
(६) एवं ताटी, भीत, शिला, छोटे छोटे पत्थरे विगेरेसे आच्छादित भूमिपर शयन करे, यावत् स्वाध्याय ध्यान करे. ३