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(१६), गृहस्थोंके पलंग, पथरणे आदिपर सुवे-शयन.
करे. ३
(१७) ,, गृहस्थोंको औषधि बतावे, गृहस्थोंके लीये और षधि करे. ... (१८) ,, साधु भिक्षाको आनेके पेस्तर साधु निमित्त हाथ, चाटुडी, कडछी, भाजन कचे पाणीसे धोकर साधुको अ. शनादि च्यार आहार देवे. ऐसे साधु ग्रहन करे.
(१९) ,, अन्यतीर्थी तथा गृहस्थ, भिक्षा देते समय हाथ, चाटुडी, भाजनादि कचे पाणीसे धो देवे और साधु उसे ग्रहन करे. ३
भाषार्थ-जीवोंकी विराधना होती है.
(२०),, काष्ठके बनाये हुवे पुतलोये, अन्व, गजादि. एवं वस्त्रके बनाये. चीटेके बनाये. लेप, लीष्टादिसे दांतके बनाये खीलुने, मणि, चंद्रकांतादिसे बनाये हुवे भूषणादि, पत्थरके बनाये मकानादि, ग्रंथित पुष्पमालादि, वेष्ठित-बीठसे बीठ मिलाके पुष्पदडादि. सुवर्णादि धातु भरतसे बनाये पदार्थ, बहुत पदार्थ एकत्र कर चित्र विचित्र पदार्थ, पत्र छेदन कर अनेक मोदक ( मादक) पदार्थ, जिसको देखनेसे मोहनीय कर्मकी उदीरणा हो ऐसा पदार्थ देखनेकी अभिलाषा करे, करावे, करतेको अच्छा समझे.
भावार्थ-ऐसे पदार्थको देखनेकी अभिलाषा करनेसे स्थाध्याय ध्यानमें व्याघात, प्रमादकी वृद्धि, मोहनीय कर्मकी उदीरणा, यावत् संयमसे पतित होता है.
(२१),, काकडीयों उत्पन्न होने के स्थान, 'काच्छा' केले आदि फलोत्पत्तिके स्थान, उत्पलादि कमलस्थान, पर्वतका