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___ २५६ - (१९२ ) , वस्त्र सहित साधु, वस्त्र सहित साध्वीयोंकी. अन्दर निवास करे. ३
( १९३ ) एवं वस्त्र सहित, वस्त्र रहित. .. ( १९४ ) वस्त्र रहित, वस्त्र सहित.
(१९५ ) वर रहित, वस्त्र रहितकी अन्दर निवास करे, करावे, करतेको अच्छा समझे.
भावार्थ-साधु, साध्वीयोंको किसी प्रकारसे सामेल रहना नहीं कल्पै. कारण-अधिक परिचय होनेसे अनेक तरहका नुकशान है. और स्थानांगसूत्रकी चतुभंगीके अभिप्राय-अगर कोई विशेष कारण हो-जैसे किसी अनार्य ग्रामकी अन्दर अनार्य आदमीयोंकी बदमासी हो, ऐसे समय साध्वीयों एकतर्फसे आह हो, दुसरी तर्फसे साधु आये हो, तो उस साध्वीके ब्रह्मचर्य रक्षण निमित्त, धर्मपुत्रके माफिक रह भी सक्ते है. तथा वस्त्रादि चौर हरण कीया हो एसा विशेष कारणसे रह भी सक्ते है.
( १९६ ),, रात्रिमें घासी रखके पीपीलिका उसका चूर्ण, सुठी चूर्ण, बलवालुणादि पदार्थ भोगवे. ३ तथा प्रथम पोरसीमें लाया चरम पोरसीमें भोगवे.३
( १९७),, जो कोइ साधु साध्वी-बालमरण-जैसे पर्वतसे पडके मरजाना, मरुस्थलकी रेती खुचके मरना, खाड-खाइमें पडके मरना. इस च्यारोंमें फस कर मरना, कीचडमें फस कर मरना, पाणी में डूबके मरना, पाणी में प्रवेश करना, कूपादिमें कूदके मरना, अग्निमें प्रवेश कर तथा कूद कर अग्निमें पडके मरना, विष भक्षण कर मरना, शस्त्रसे घात कर मरना, पांच इंद्रियोंके वश हो मरना, मनुष्य मरके मनुष्य होना.