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पशु मरके पशु होना अंतःकरणमें मायशल्य रखके मरना, फांसी लेके मरना, महाकायावाले मृतक पशुके कलेवरमें प्रवेश हो मरना संयमादि शुभ योगोंसे भ्रष्ट हो, अर्थात् विराधक भावमें मरना, इन्हके सिवाय भी जो बालमरण मरनेवालोंकी प्रशंसा तारीफ करे, करावे, करतेको अच्छा समझे.
उपर लिखे १९७ बोलोंसे एक भी बोल सेवन करनेवाले साधु-साध्वीयों को गुरुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त होता है. प्रायश्चित्त fafa देखो arari उद्देशामें.
इति श्री निशिथसूत्र - इग्यारवां उद्देशाका संक्षिप्त सार.
( १२ ) श्री निशिथसूत्र - बारहवां उद्देशा.
( १ ) ' जो कोइ साधु साध्वी' 'कलूणं' दीनपणाको धारण करता हुवा त्रस - जीव गौ, भैंसादिको तृणकी रसी (दोरी) से बांधे. एवं मुंज रसीसें बांधे. काष्ठकी चाखडी तथा खोडासे बन्धन करे, चर्मकी रसीसे, रज्जुकी रसीसे, सूतकी रसीसे, अन्य भी किसी प्रकारकी रसीसे, त्रस जीवोंको बांधे, बधावे, अन्य कोई साधु बांधते हो, उसको अच्छा समझे.
(२) एवं उक्त बन्धनोंसे बन्धा हुवा त्रस जीवोंको खोले, खोलावे, खोलतोंको अच्छा समझे.
वह
भावार्थ- कोइ साधु, गृहस्थोंके मकान में ठेरे हुवे है. गृहस्थ जैन मुनियोंके आचारसे अज्ञात है. गृहस्थ कहे कि हे मुनि ! में अमुक कार्यके लीये जाता हूं. मेरे गौ, भैसादि पशु,
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