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२३३ (७८), रजोहरण उपर सुवे, अर्थात् रजोहरणको बेअ. दबीसे रसे, रखावे, रखतेको अच्छा समझे. - भावार्थ-मोक्षमार्ग साधनेमें मुनिपद प्रधान माना गया है. मुनिपदकी पहेचान, मुनि के वेषसे होती है. मुनिषेषमें रजोहरण, मुखबत्रिका मुख्य है. इसका बहुमान करनेसे मुनिपदका बहुमान होता है. इसकी बेअदबी करनेसे मुनिपदकी बेअदबी होती है, वह जीव दुर्लभबोधी होता है. भवान्तरमें उसको रजोहरण मुखवत्रिका मिलना दुर्लभ होगा. वास्ते इसका आदर, सत्कार, विनय, भक्ति करना भव्यात्मावोंका मुख्य कर्तव्य है. ____ उपर लिखे ७८ बोलोंसे कोइ भी बोल सेवन करनेवाले मु. नियोंको लघु मासिक प्रायश्चित्त होता है. प्रायश्चित्त विधि देखो वीसवां उद्देशामें. इति श्री निशिथसूत्र-पांचवा उद्देशाका संक्षिप्त सार.
--* *-- (६-७) श्री निशिथसूत्र-छट्ठा-सातवां उद्देशा. . शास्त्रकारोंने कर्मोंकी विचित्र गति बतलाइ है. जिसमें भा मोहनीय कर्मका तो रंग ढंग कुछ अजब तरहका ही बतलाया है. बडे बडे सत्त्वधारी जो आत्मकल्याणकी श्रेणिपर चडते हुवेको भी मोहनीय कर्म नीचे गिरा देता है. जैसे आर्द्रकुमार, अरणिकमुनि, नंदिषेण, कंडरीकादि.
उचा चढना और नीचा गिरना-इसमें मुख्य कारण संगतका है. सत्संग करनेसे जीव उच्च श्रेणीपर चढता है, कुसंगत करनेसे जीव नीचा गिरता है सुसंगत और कुसंगत-दोनोंका स्वरुपको