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(३०) है वस सब वैरी भूमिया दुस्मनों मेरी आज्ञामे ही वर्तते है वास्ते मुजे. संग्राम करने कि कोई मी जरूरत नहीं है।
(७) प्रश्न- हे रानन्-आपने उच्च कुलमे अवतार लिया है तौ भवान्तरेमे अच्छे मोक्ष सुखके देनेवाला एक 'यज्ञ' करावों और श्रमणशाक्यादि तापसोंकों और ब्रह्मणों को भोजन करवाके दक्षिणा देके फीर योग लेना। ... . (उ.०) हे भूऋषि-प्राणीयों के बद्धरूप नो. 'यज्ञ' करामातों दुनीयोंमें प्रगट ही अकृत्य है कारण यज्ञमें तो गन अश्व माता पिता बकरादिका बलीदान किया जाता है इन्ही घोर हिंस्यासे तो बीवोंकि दुर्गति ही होती है अच्छे मनुष्योंकों यह न करने लायक ही नहीं है । और एसे यज्ञ कर्मके करनेवाले श्रमण शाक्यादिको भोजन कराना यह भी यज्ञ कर्मकों उतेभित करता हैं और संसारीक भोग भोगवना यह विष समान फल देनेवाला है यह तुमारा केहना बीलकुल अयोग है हे ब्रह्मग तुही विचार यह संयम कितने उच कोटीका है अगर कोई मनुष्य प्रतिमास दश दश लक्ष गायों का दान दे तथा सुवर्णनय पृथ्वोका भी दार देता है । उन्होंसे भी संयम अधिक फलवाला है। कारण संयम पालने वाला तो दश लक्ष क्या परन्तु सर्व जगत् जन्तुओंकों अप. यदान दिया है वास्ते सर्व प्रशंसनीय संयम ही है उन्हीकों अंगीकार करते हुवे सर्व जीवोंको अभय दान देता हुवा भाव यज्ञ करता हूया म्है आत्म सुखोंका ही अनुभव कर रहा हूं।
(क) प्रश्न-ह पराधीश-गृहस्थाश्रम ब्रह्मचार्याश्रम भीक्षावृत्याश्रम और वनवासाश्रम यह च्यारांश्रमके अन्दर गृहस्थाश्रम ही